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मनाना तिहास
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सारभी
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भा२श्री AOOL महायुद्धनुं वन.
॥ छंद मोतीदाम ।। अजे हय हंकिय खाग उभार, सतं पंच सूरह सारह सार ।। जके दुलहं बर रूप जणाव, दिये खग घाव जके रण दाव ॥ १ ॥ श्रियं हथ कुंत प्रभाग सतोल, बके कह आजम आजम बोल ॥ अधंधड साह दळं उलंघाय, अजोधक आजम सिंधुर आय ॥ २ ॥ तहां हक हांकल जोम तरंग, दहं पग लग्ग गजंस रदंग ॥ बरच्छिय आंछट तेणह वार, सको उर मावत लग्ग समार ॥३॥ फटे उर मावत आजम फट्ट, विह दस पार दसाय बछट्ट ।। यहे उपमा कवि कोयस आंण, चरच्छिय रूप करंत बखांण ॥ ४ ॥ अगें पँचसो भड नागह आद, बहेकर बांण लगा लग वाद ॥ दडंदड लोथ किता पड द्रोह, बडब्बड क्रोध उसे रद बोह ॥ ५। लडथ्यड घायल आहड लख्ख, पडप्पड ऊठ लडे बहु पख्ख ॥ झडोझड खागस ओझड जोम, भडं धड केफ तडफ्फड भोंम ॥ ६ ॥ कडक्कड त्रज्जड हूहड कट्ट, खडख्खड साह सभा मृतखट्ट॥ ढडंढड ढालड सजिय ढुल, तडत्तड तूटत सीस अतूल ॥ ७॥ चडच्चड रूद्र पिये पळचार, उडे रत रत्तड थाय अपार ॥ झडप्पड जोगण पत्र झबोड, गडग्गड पीवत रत्त अग्रोळ ॥८॥ हबोळस एम अजे किय हांम, घलोचल पंस जूध चलांम ॥ बळोबळ साबळ हूल बहंत, किता तह बीर छबास कहंत ॥९॥ भळोभळ वीजळ बाढ भळक्क, गळोगळ गुद्रळ ग्रींध्र गळक्क ॥ थळोथळ स्त्रोण नदी बह थट्ट, दळोदळ लग्गिय घाव दपट्ट ॥१०॥ झटप्पट रंभ विमाणस झुम, बरथ्थट सूरह चाह बिलूम ।। लिये पट धुंघट ओटस लाज, मळे वर ईछत सार समाज ॥११॥ अतीयत खेल रमे खग आट, बिकट्ट सरूप बण्यो खत्र बाट ॥ घटघट स्त्रोणत ऊपपट घाव, कटंकट केक. तडफ्फ कटाव ॥१२॥ हहकत हक्कत घायल होय, बहकत बक्कत केक बढोय ॥ झझंकत झक्कत जोगण झंड, चहक्कत चक्कत ग्रीधण चंड ॥१३॥