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________________ 1st INTERNATIONAL JAIN CONFERENCE ने फिर पूछा- 'सर, आप कैसी विचित्र बात कर रहे हैं? इतने बड़े-बड़े आविष्कार करने के बाद आप वैज्ञानिक नहीं बनना चाहते ऐसा क्यों? आइंस्टाइन थोड़ा मुस्कुराए फिर गंभीर होकर बोले- 'मैंने न जाने कितने वैज्ञानिक तथ्यों व सत्यों की खोज की और अपना सारा जीवन उसी में व्यतीत कर दिया। लेकिन अब मुझे अनुभव हो रहा है कि जीवन के उस पड़ाव पर स्वयं खाली ही जा रहा हूँ। मैं उस तत्त्व पर कभी सोच ही नहीं पाया, जो इन सब वैज्ञानिक तत्त्वों व शक्तियों का खोजकर्ता था। उस आविष्कारक को नहीं खोज पाया, जिसने सारे आविष्कार किए। मुझे अपने अंतिम समय में इस बात का खेद है और रहेगा कि वैज्ञानिक होते हुए भी मैं क्या क्या खोजने में लगा रहा लेकिन अपनी स्वयं की खोज नहीं कर पाया। उस अनजाने तथ्य सत्य एवं आत्म तत्त्व की खोज की तरफ मेरा ध्यान क्यों नहीं गया? यदि पुनर्जन्म है और मेरा फिर से जन्म हुआ तो प्रभु से मेरी एक ही प्रार्थना है- अगले जन्म में मैं आत्मदर्शी आत्म-अन्वेषक संत बनूँ और जीवन तथा उस परमशक्ति के तथ्यों से आत्म साक्षात्कार करने में सफलता प्राप्त करूँ। यदि माँ भी अध्यापक की तरह वैसा ही विचार करती तो क्या आज अल्बर्ट आइंस्टाइन विश्व के महान् वैज्ञानिक होते? इसप्रकार मां अपने पुत्र को संस्कारित कर पूरे विश्व का हित कर सकती है। जैन जीवन शैली को अपनाने वाली गृहणियाँ अनर्थदण्ड से बचने के लिए पानी का सीमित उपयोग करती है, जो कि विश्व के जल संकट की समस्या के निदान में योगदान है । गृहिणी घर में अनीति से आने वाले धन को प्रोत्साहन नहीं देती है तो वह भ्रष्टाचार की प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन न देकर पूरे विश्व को लाभान्वित करती है। चूंकि वर्तमान में एक देश का सामान दूसरे देश में बिकने के लिए जाता है। ऐसे में लोभवश की गई मिलावट विश्वव्यापी अहित को निमन्त्रण दे सकती है सामायिक तप आदि नियमों के पालन से अपने जीवन को 1 सुन्दर बनाती है और अपने आचरण से दूसरों को प्रभावित करती है। परस्परोपग्रहो जीवानाम्' के सिद्धान्त से दूसरे के विकास में अपने विकास की दृष्टि देने वाले जैनदर्शन से महिलाएं भी प्रभावित है, ये अपने पति के विकास में अपने बच्चों के विकास में अपना विकास देखती है, जो कि विश्व - विकास का आधार बनता है। विविधता और विभिन्नताओं के मध्य सामंजस्य का प्रतिरूप एक नारी का जीवन होता है अपने पिता के घर से पतिगृह जाकर अनेक विभिन्नताओं में अपने आपको ढालती है, यही बोध वह अपने जीवन के अन्य प्रसंगों में भी प्रयोग करती है। 1 परिग्रह के लिए लोग हिंसा करते हैं, झूठ बोलते हैं, बेईमानी करते हैं और विषयों का सेवन करते हैं परिग्रह के मूल में वस्तुओं का प्रदर्शन आज सबसे बड़ा कारण है। पहनने-ओढने में इतनी आसक्ति बढ़ गई है कि आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संग्रह कर रहे हैं, जिसमें विश्व के संसाधनों का दुरुपयोग होता है। बाहरी प्रदर्शन के कारण समाज में दहेज की प्रथा अभी तक व्याप्त है। इसके लिए सास बहू के प्राण भी हर लेती है। इस सबको बन्द करने में महिलाएं को आगे आना होगा। यदि वे प्रदर्शन और सजावट की 36
SR No.032684
Book Title1st Jain International Conference
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaina Jito Shrutratnakar
PublisherJaina Jito Shrutratnakar
Publication Year2020
Total Pages40
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size13 MB
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