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________________ कान्हड़दे प्रबन्ध में जालोर वर्णन कवि पद्मनाभ का कान्हड़दे प्रबन्ध राजस्थानी का एक सर्वोत्तम महाकाव्य है जिसमें अल्लाउद्दीन खिलजी के साथ कान्हड़दे-वीरमदे के युद्धों का प्रामाणिक इतिवृत्त है। इसमें जालोर नगर का बड़ा ही सुन्दर चित्र प्रस्तुत किया है, यहां उसका कुछ अंश उद्धृत किया जाता है : श्रीनगर जालहुर तणी रचना। गढ मढ मन्दिर पोलिपगार । अट्टालीय । मालीयां टोडडे त्रिकलसं गगन चुम्बित कोसीसां । सातखणां धवलगृह। रम्य प्रवेश। सूकड़िया गवाक्ष । मलयागिरी जाली। कृष्णागिरि थांभली। मणिबद्ध काचबद्ध भूमि । उराउरी वलभी। पगथीयांरी चउकीसर चूनालूआं । शतभूमिका सहस्रभूमिका सभा नी रचना। महाराजाधिराज श्री कान्हड़दे सभा पूरी बइठउ छइ। सिंहासनि पाउ परठिउ छइ। मेघवना उलच बांध्या छइ। परीयछ ढली छइ । केतकी ना गंध गहगहीया छइ । सोरभना सोड़ सांचरिया छइ। सभा मांहि सेरी मेल्हाणी छइ । जाइ वेली वालउ पाडल ना परिमल पंचवर्ण पुष्फजाति ना प्रकर पाथरिया छइ । गुल्लाल ना गंध गह गहीया छइ । पडीयां कपूर पाए चंपाइ छइ। घोड़ा वहीआलइ घालीया छइ। हाथीयानी सारसी आगलि कानि पडिउं कांइ नथी संभलातु। पंच शब्द वाजिन वाजइ छइ । गल्यां पीतल रतांजणी तणां पषावज धौंकार करइ छइ । नृत्यकी पात्र नृत्य करइ छइ । तत वितत घन शुखिर पंचवर्ण वाजिन वाजइ छइ । पंच वर्ण छत्र धरियां छइ। चामर व्यिजन बिहूं पषि हुइ छइ। अमात्य प्रधान सामंत मंडलीक मुकुट वर्द्धन श्रीगरणा वइगरणा धर्मादि करणा मसाहणी टावरो बारहीया पुरुष वइठा छइ । ॥चउपई॥ कोठा नइ कोसीसां घणां, गुष बार मढ मतवारणां । वली धवलहर जोयां चडी, रतन जडित बइठी फूदडी ॥२४२॥ राजलोक जोया. कुयरी, जिहां कान्हड़नी अंतेउरी। कूयरि करइ केतलडं वषाण, जोया पंच वर्ण केकाण ॥२४३॥ [ ७३
SR No.032676
Book TitleSwarnagiri Jalor
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharati Acadmy
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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