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मार्गा'"
दिशि पुष्य योगे जावालिपतन वरेऽथ समथितोऽयम् । प्रत्यक्षर गणनया""पञ्चाशताद्ध साद्ध विशत्यधिक युक्त मनुष्टुभांभोः ॥१८॥
१३. महावीर कलश गा०-२९-इस अज्ञात कत्तक रचना का उल्लेख जैन
मरु-गूर्जर कवि और उनकी रचनाएं पृ० ४५ में है।
१४. जालोर नवफणा पार्श्व १० भव स्तवन-यह गा० ३५ की रचना
सं० १५४३ में पद्ममन्दिर की है जिसकी प्रति सं० १५४६ लिखित जैसलमेर भण्डार के गुटके में है।
१५. सुमित्रकुमार रास–पिप्पलक विवेकसिंह शि. धर्मसमुद्र का यह रास
सं० १५६७ में रचित उपलब्ध है।
१६. शील रास-सं० १६१२ से पूर्व श्री विजयदेवसूरि द्वारा भ० नेमिनाथ के
सम्बन्ध में यह जालोर में रचित है।
१७. विल्हण पंचाशिका चौपाई-सं० १६३९ आ० सु. १ को मडाहड़
गच्छीय सारंग कवि की रचना गा० ४१२ की है ।
१८. मातृका बावनी-सं० १६४० पौष बदि १० गुरुवार, मडाहड़ गच्छीय
कवि सारंग।
१९. भोज प्रबन्ध चौपाई-सं० १६५१ श्रावण बदि ९ जालोर, मडाहड़
गच्छीय कवि सारंग। २०. वीरांगद चौपाई-सं० १६४५ ज्येष्ठ सुदि ५ जालोर मडाहड़ गच्छीय
कवि सारंग। २१. भावषद्विशिका सटीक-सं० १६७५ आषाढ़ सुदि ५ जालोर मडाहड़
गच्छीय कवि सारंग। २२. जालोर चैत्य परिपाटी-सं० १६५१ में नर्षि कृत है। २३. वरकाणा पार्श्वनाथ स्तोत्र-*सं० १६५१ जालोर नर्षि गा-७१ । २४. पार्श्वनाथ स्तवन-(संस्कृत) गा० १३ सतरहवीं शती के कवि ज्ञान
प्रमोद ।
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