________________
चन्द्रगच्छोय खरतर सा० सलखण
आबू तीर्थ की विमलवसही के स्तंभादि पर उत्कीर्णित लेख से विदित होता है कि सं० १३०७ में जावालिपुर के खरतरगच्छीय श्रावक सलखण ने भगवान आदिनाथ के सर्वांगाभरणों का जीर्णोद्धार कराया था, जिसका लेख इस प्रकार है :
संवत् १३०८ वर्षे फाल्गुण बदि ११ शुक्रे श्री जावालिपुर वास्तव्य चन्द्रगच्छीय खरतर सा० दुलह सुत सधीरण तत्सुत सा० वीजा तत्पुत्र सा० सलखणेन पितामही राजू माता साउ भार्या माल्हणदेवि (वी) सहितेन श्री आदिनाथ सत्क सर्वांगाभरणस्य साऊ श्रेयोर्थं जीर्णोद्धारः कृतः ॥
अर्थात् – सं० १३०८ मिती फाल्गुन बदि ११ को जावालिपुर निवासी खरतर गच्छीय सा० दुलह पुत्र सधीरणतत्पुत्र वीजा के पुत्र सा० सलखण को अपनी पितामही राजू, माता साऊ और भार्या माल्हणदेवी आदि के साथ माता साउ के श्रेय - कल्याण निमित्त श्री आदिनाथ भगवान के सर्वांगाभरणों का जीर्णोद्धार कराया ।
नागौर के वरहुडिया साहु नेमड़ का परिवार
सं० १२९६ मिती वैशाख सुदि ३ की आबू की लूणिगवसही की प्रशस्ति जो प्राचीन जैन - लेख -संग्रह के लेखाङ्क ६६ में प्रकाशित है, उसमें नागौर के वरहुडिया साहु नेमड़ सुत सा० राहड़ सा० जयदेव, सहदेव पुत्र सा० खेटा, गोसल, जयदेव के पुत्र सा० वीरदेव, देवकुमार, हालू एवं राहड़ के पुत्र सा० चिणचन्द्र, धनेश्वर, अभयकुमार लघु भ्रातृ लाहड़ ने अनेक स्थलों - तीर्थों-मन्दिरों में जो निर्माण कराये, उनका उल्लेख है यह अभिलेख ४५ पंक्ति में है । पंक्ति ३२-१३ दोवार लिखा प्रतीत होता है। इसमें जालोर के पार्श्वनाथ चैत्य की जगती में श्री आदिनाथ बिम्ब और देवकुलिका निर्माण कराने का उल्लेख १३-१४वीं पंक्ति में है तथा ३३ ३४वीं पंक्ति में फिर पार्श्वनाथ चैत्य की जगती में अष्टापद (देहरी) में खत्तक द्वय निर्माण कराने का उल्लेख इस प्रकार है :
"श्री जावालिपुरे श्री पार्श्वनाथ चैत्य जगत्यां श्री आदिनाथ बिब देवकुलिका च" "श्री जाबालिपुरे श्री सौवर्णगिरौ श्री पार्श्वनाथ जगत्यां अष्टापद मध्ये खत्तक द्वयं च "
[ ६३