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________________ सं० १६५१ में नगर्षि गणि कृत 'जालुर नगर पंच जिनालय चैत्य परिपाटी' में जालोर के ५ जिनालयों की बिंब संख्या अवश्य दी है पर स्वर्णगिरि के मन्दिरों का कोई उल्लेख नहीं है अतः उस समय वे मन्दिर भग्न दशा में या खाली दशा में होंगे। जहाँगीर के समय में महाराजा गजसिंह राठौड़ और उनके मंत्री मुहणोत जयमलजी हुए। मुहणोतजी ने स्वर्णगिरि पर जिनालय बनवा कर प्रतिष्ठा करवाई और अन्य मन्दिरों का जीर्णोद्धार भी करवाया। सं० १६८१ में तपागच्छीय आचार्य श्री विजयदेवसूरिजी के आज्ञानुवर्ती मुनि जयसागर गणि द्वारा प्रतिष्ठा कराये जाने के अभिलेख विद्यमान हैं। कुछ प्रतिमाओं पर मुहणोतों के अतिरिक्त कावेड़िया-कोठारी, चोरवेड़िया आदि के भी लेख पाये जाते हैं । मुनि श्री कल्याणविजयजी सम्पादित "श्री तीर्थ माला संग्रह" नामक पुस्तक में कवि जससोम रचित मेड़ता से शत्रुजय तीर्थ मार्ग चैत्य परिपाटी प्रकाशित है जिसमें सं० १६८६ का निम्न उल्लेख है। इस समय स्वर्णगिरि के महावीर स्वामी के जिनालय के जीर्णोद्धारित हो जाने से उसका भी उल्लेख है। शुभ मुहूतं शकुन प्रमाण, पहिलु हिव कोध प्रयाण । संघ मिलिउ बहु समेलो, जालोर थयो सहु भेलो ॥८॥ पूज्या तिहां पंच विहारि, जिन फाग रमइ नर नारि । सोवनगिरि वीर जुहार्या, भव पातक दूर निवार्या ॥९॥ महोपाध्याय विनयविजय कृत इन्दु दूत-विज्ञप्ति पत्र ( पद्य १३१ व गद्य ) में जोधपुर से सूरत के मार्ग में सुवर्णाचल का वर्णन ६ श्लोकों में किया है। इसमें जालोर को जालंधरपुर लिखा है तथा सीरोही को श्रीरोहिणी लिखा है। इसमें स्वर्णगिरि पर महावीर, पार्श्वनाथ के जिनालयों का ही उल्लेख है। यतः तस्मिन् शैलेऽन्तिम जिनवरा वाम वामेय देव, प्रासादौ यौ तरुण किरणः संगरं निर्मिमाते। मध्यस्थः सन् सुघटित रुची तौ कुरु प्रायशो यत्, प्रोत्तगानां भवति महत वाप ने यो विरोध ॥३॥ तत्र क्रीडोपवन सरसो स्वच्छ नीरान्तरेषु, स्नात्वा स्वरं प्रतिकृति मिषान्तव्य धौतांशुकः सन् । ज्योत्स्ना जालैः स्नपय मधुरै ऊर वामेय देवी, कर्पूराच्छस्तवनु च कर रजयाभ्यर्च्य पुण्यम् ॥३६॥ ४६ ]
SR No.032676
Book TitleSwarnagiri Jalor
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharati Acadmy
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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