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________________ उपरोक्त मस्जिद और 'हरजी खांडा' नामक मस्जिद जैन मन्दिरों को ध्वस्त करके ही निर्मित की गई है। स्वर्णगिरि दुर्ग के आदिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर जिनालयों का समयसमय पर जीर्णोद्धार अवश्य हुआ पर पार्श्वनाथ जिनालय-कुमारपाल महाराजा का कुमरविहार अपनी विशालता को कायम न रख सका। वह एक छोटे से कलापूर्ण शिखर को लिए छोटे से मन्दिर के रूप में स्थित है प्राचीनता के नाम पर अब केवल उसकी दीवाल में अश्वावबोध समलीविहार की पट्टिका लगी जालोर के पूर्व में सीरोही राज्य, पश्चिम में लूणी नदी, उत्तर में पालीबालोतरा परगना और दक्षिण में सांचोर व जसवतपुरा परगना है। इसकी लम्बाई पूर्व और पश्चिम ७२ मील, चौड़ाई उत्तर दक्षिण ५० मील के लगभग है। इसमें दो पहाड़ियां हैं, एक पश्चिम और दूसरी दक्षिण पूर्व है जो २७५७ फुट ऊंची है। पश्चिम पहाड़ी पर सुप्रसिद्ध दुर्ग ८०० गज लम्बा और ४०० गज चौड़ा व १२०० फुट ऊंचा है। समुद्र की सतह से इसकी ऊंचाई २४०८ फुट है। जादुदान चारण के अनुसार यह किला १२४७ गज लम्बा और ४७० गज चौड़ा है। इसका चढाव २००० कदम है। इसके तीन दरवाजे और ५२ बुर्ज हैं। इस किले की नींव भोजने डाली और कितुक कीत्तिपाल व चाचिग देव व सामंतसिंह चौहान ने उद्धार कराया था। दीवान फतेखान (प्रथम ) ने पतित भाग का मरम्मत कराके यहां एक महल का निर्माण कराया था। किले पर सूरज पोल, ध्र व पोल, चांद पोल और लोह पोल हैं जिन्हें पार करके किले पर जाया जाता है, गढ के दर्शनीय स्थानों में जैन मन्दिरों के अतिरिक्त मल्लिक साह की दरगाह, दहियों का गढ और वीरमदेव की चौकी है। कुमरविहार के सामने दो एक हिन्दू मन्दिर भी हैं। प्राचीन काल से जालोर और स्वर्णगिरि की अतिशयशाली तीर्थ क्षेत्रों में गणना की जाती थी। इस विषय के तीर्थमालाओं आदि के उल्लेख स्तवन आगे दिए जाएंगे पर महेन्द्रप्रभुसूरि की अष्टोत्तरी तीर्थमाला की तेरहवीं शती की सटीक रचना के अनुसार यहाँ बहुत बड़े धनाढयों का निवास स्थान था यतः 'नव नवइ लक्ख धणवह अलद्धवासे सुवण्णगिरि सिहरे । नाहड़ निव कालोणं युणि वीरं जक्खवसहोए॥' अर्थात् ९९ लाख की सम्पत्ति वाले सेठों को भी जहां रहने का स्थान नहीं मिलता था। अर्थात् जहाँ करोड़पति ही रहते थे ऐसे सुवर्णगिरि शिखर पर
SR No.032676
Book TitleSwarnagiri Jalor
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharati Acadmy
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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