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________________ हाथ न मर के स्वयं कटार अपने उदर में भौंककर भी शत्रु पक्ष के अनेक सामन्तों को मार कर प्राण त्यागे। फीरोजा की धाय ने उसका मस्तक ले जाकर उसे भेंट किया। राजकुमारी फीरोजा उसकी वीरता से मुग्ध तो थी ही उसने यमुनातट पर जाकर सिरके साथ कूदकर नदी में जल समाधि लेली और अपने मनोनीत प्रियतम के साथ सच्चे प्रेम का प्रमाण प्रस्तुत कर आत्म विसर्जन कर दिया। राठौड़ वंशावली के नवकोटों की विगत में आठमो कोट जालोर पमार भोज रो बसणो छ। भाखर ऊपर बड़ो गढ छ। मांहे झालर बाव अखूट पाणी छ। घास बलीता नै घणी ठौड़ छ पाखती कलस जलंधरीनाथ बेवड़ा भाखर छै सहर हेठे बस छ सह दोलौ कोट छ तलाव बावड़ी बड़ी जायगा छ गांव ३६० लगै छ। डोडीवाल, सीवाणो, रामसेण, लोहीयाणो, बड़गांव, गूदाऊ, राड़धडो इतरा तो परगना लागै छै धरती माहै रजपूत मैणा, भील रहै छै। बड़ी बांधी जायगा छ घणी उनाली परगनै नीपज छ । जोधपुररा धणी रौ राज छ ॥८॥ सं० १३०१ कानड़दे सोनिगरै जालंधरीनाथरी दवा सुसोवनगिरि उपर गढ करायो। जालंधरीनाथ जोगी रे नांव आबै पहाड़रो नाम जालंधर कहीजे छ। सं० १३१५ बैशाख सुदि ९ जालोर गढ़ भांगो कानड़दे वीरमदे राणगदे काम आया। नोट-इसमें उल्लिखित संवत गलत है, ईस्वी सन् होतो फिर भी वास्तविकता से निकट आ सकता है। ७८ 1
SR No.032676
Book TitleSwarnagiri Jalor
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharati Acadmy
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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