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श्रीसवाल जाति का इतिहास
मल,
की 'दुकान पर मुनीम होगये । उस स्थान पर आपने बड़ी सच्चाई और ईमानदारी से काम किया और मालिकों में तथा जनता में अच्छी प्रतिष्ठा प्राप्त की । सन् १९१६ में स्वतंत्र दुकान स्थापित करने के विचार से ये मद्रास आये और बिल्लीपुरम् में अपने बहनोई सेठ कुंदनमलजी सेठिया की भागीदारी में 'सेठ वक्तावर मल बच्छराज' के नाम से दुकान स्थापित की। सात वर्षों में आपने अपनी दुकान की स्थिति को मजबूत बना लिया। आपका स्वर्गवास संवत् १९८० में हुआ। आपने यहां की तामिल जनता में अच्छा सम्मान पाया। आपके सुखराजंजी नामक एक पुत्र है। विल्लिपुरम् की जनता में सुखराजजी दूगड़ का बड़ा सम्मान है। आप अच्छे राष्ट्रीय कार्य्यकर्ता और खहर प्रचारक है । आप यहां की कांग्रेस के सेक्रेटरी भी रह चुके हैं। ब्यावर जैन गुरुकुल आदि संस्थाओं को आप काफी सहायता पहुँचाते हैं । सेठ चन्दनमलंजी के पुत्र नथमलजी बड़े योग्य और होनहार नवयुवक हैं। इन्होंने व्यावर गुरुकुल से न्यायतीर्थं, व्याकरणतीर्थं तथा सिद्धान्त तीर्थं की परिभाषाएँ पास कीं । विल्लीपुरम् में आप लोग मेसर्स बतावरमल बच्छराज के साझे में बैकिंग का तथा नेहरू स्वदेशी स्टोअर के नाम से स्वदेशी कपड़े का व्यापार करते हैं। यहां के व्यापारिक समाज में यह फर्म प्रतिष्ठित है ।
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सेठ कपूरचन्द हंसराज दूगड़ न्यायडोंगरी
इस परिवार के पूर्वज हुकमीचन्दजी दूगड़ मारवाड़ के दूगोली नामक स्थान से कुचेरा में आकर बसे । इनके भवानीरामजी, हिम्मतरामजी, हीराचन्दजी, सिरदारमलजी, गुलाबचन्दजी, धनजी, सूरजमलजी और जोधराजजी नामक ८ पुत्र हुए। इनमें गुलाबचन्दजी, सूरजमलजी तथा जोधराजजी का परिवार वाले लगभग सौ सवासौ साल पहले न्यायडोंगरी आये तथा शेष ५ भाइयों का परिवार टाकली ( चालीस गाँव ) गया । सेठ गुलाबचन्दजी के पुत्र हंसराजजी तथा सूरजमलजी के पुत्र चन्दूलालजी हुए । इन दोनों भाइयों ने इस परिवार के व्यापार और सम्मान में उन्नति की । इन दोनों भाइयों ने व्यापार संवत् १९४० में शुरू किया। सेठ चन्दूलालजी का संवत् १९७८ में स्वर्गवास हुआ ।
सेठ हंसराजजी का जन्म संवत् १९०८ में हुआ । आप विद्यमान हैं । आपके पुत्र नथमलजी, माणकचन्दजी, अमरचन्दजी तथा कपूरचन्दजी हैं। इसी तरह चंदूलालजी के पुत्र रतनचन्दजी और उमदजी हैं। आप सब बंधु किराना, कपास, कपड़ा, कृषि तथा साहुकारी लेने देन का काम काज करते हैं। यह परिवार न्यायडोंगरी में अच्छा प्रतिष्ठित माना जाता है । । नथमलजी के पुत्र हरकचन्दजी तथा माणकचन्दजी के पुत्र मोतीलालजी भी व्यापारिक कामों में भाग लेते हैं। शेष सब भाइयों के भी संतानें हैं। यह परिवार स्थानकवासी आम्नाय का अनुयायी हैं ।
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