SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 961
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लाला पन्नालालजी दूगड़, जोहरी, अमृतसर ___ इस बानदान के पूर्वज लाला उत्तमचन्दजी महाराजा रणजीतसिस्नी मोर्ट ज्वेलर थे। तब से बरावर यह परिवार जवाहरात का व्यापार करता आ रहा है। आगे चलम इस परिवार में काला राधाकिशनजी जौहरी हुए। आपके बड़े भ्राता छाला जसवन्तरायजी और छोटे भाता लाला हुकमचन्दजी तथा लाला हरनारायणदासजी भी जवाहरात का व्यवसाय करते थे। लाला राधाकिसनजी के पुत्र लाल पक्षालालजी हुए। ___ लाला पन्नालाऊजी नामांकित जौहरी थे। भारत के जौहली समाज में आप सुपरिचित एवं प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। पंजाब प्रान्त में आपका घर सबसे प्राचीन मन्दिर मार्गीय आम्नाय का पालने वाला है। आप सन् १९१४ में ऑल इण्डिया जैन कान्फ्रेंस मुलतान अधिवेशन के सभापति निर्वाचित हुए थे। अमृतसर मन्दिर की देख रेख आप ही के जिम्मे थी। सन् १९२० में भापक तथा सन् १९२८ में आपके पुत्र रामरखामलजी का स्वर्गवास हुना। इस समय रामस्खामजी बहती पुत्र मोतीलालजी सराफी तथा जवाहरात का न्यापार करते हैं। लाला पचालाकी अपने भाणेज लाला मोहनकाली पाटनी बे उपियाने से २ साल की उम्र में अपने यहाँ ले आये। इस समय लाला मोहनबाजी जैन बी० ए० एल० एक० बी० अमृतसर में अच्छी प्रतिष्ठा रखते हैं। आपका विस्तृत परिचय पाटनी गौत्र में दिया गया है। लाला गोरीशंकर परमानन्द जन दूगड़, कसूर (पंजाब) यह खानदान सम्बी मियाद से कसूर में निवास करता है। इस खानदान के पूर्वज लाला जमीताशाहजी और उनके पुत्र लाला वधावाशाहजी तथा जीवनशाहजी सराफी व्यापार करते रहे। लाला. वधावाशाहजी की लगन धर्मध्यान और जैन कौम की उन्नति में विशेष थी। आपका स्वर्गवास सन् १९०२ में हुआ। आपके लाला गौरीशंकरजी, बाला परमानन्सी तथा लाला चुनीलालजी वामक । पुत्र हुए। इन सजनों में लाला गौरीशंकरजी और परमानन्दजी ने पंजाब की जैन समाज में बहुत नाम पाया। आप दोनों भाइयों का परस्पर बहुत मेल था। आप दोनों भाई क्रमशः सन् १९२३ पौर, १९२० में . स्वर्गवासी हुए। आपके छोटे भाई चुन्नीलालजी पंजाब युनिवर्सिटी की मेट्रिक में सर्व प्रथम आये थे। सन् १९२८ में इनका स्वर्गवास हुआ। ___ लाला परमानन्दजी बी० ए०-आप कसूर हाईकोर्ट के एडवोकेट थे। और यहाँ के बड़े मोआजिज़ व्यकि माने जाते थे। आप अपनी अंतिम उमर तक कसूर म्यु. के मेम्बर रहे। आपने पंजाब .११
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy