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श्रीसवाल जाति का इतिहास
सोहनलाल हीरालाल के नाम से जूट का होता है। फरबिसगंज में इन्द्रचन्द्र सोहनलाल के नाम से पाट कपड़े का तथा सिरसा (पंजाब) में हीरालाल भँवरलाल के नाम से गल्ले का व्यापार होता है । तथा गुलाब बाग (पूर्णियाँ) में सुजानमल करनीदान के नाम से जूट का व्यापार होता है । पिछली दो फर्मों में आपका साझा है। आप लोग तेरापंथी जैन धर्म के अनुनापी हैं।
सेठ हनुमतमल नथमल दूगड़, सरदारशहर इस परिवार के पुरुष पहले सवाई नामक स्थान पर रहते थे । वहीं इस वंश में खेमराजजी हुए। आपकी बहुत साधारण स्थिति थी । आप वहीं रहकर खेती बाड़ी का काम कर निर्वाह किया करते थे । वहीं आपके पनेचन्दजी नामक एक पुत्र हुए। इन्हीं दिनों सरदारशहर बसाया जा रहा था, अतएव पनेचन्दजी भी संवत् १८९५ के करीब सवाई को छोड़कर सरदारशहर आ गये । आपके लालचन्दजी नामक पुत्र हुए। सेठ लालचन्दजी का जन्म संवत् १८८८ का था। जिस समय आपके पिताजी सरदार शहर में आये थे उस समय आपकी वय केवल ७ साल की थी । की करीब २५ वर्ष की अवस्था में आप तेजपुर नामक स्थान पर गये और वहीं आपने मेसर्स महासिंहराय मेघराज बहादुर के यहाँ सर्विस की। पश्चात् आप वहीं मुनीम हो गये । वहाँ से आप वापिस संवत् १९५५ में देश में आ गये एवं अपना जीवन शांति से बिताने लगे । दस वर्ष बाद आपका स्वर्गवास हो गया। आपके हनुतमलजी और नथमलजी नामक दो पुत्र हैं । प्रारम्भ में आप लोग भी अपने पिताजी के साथ तेजपुर ही में रहे । पश्चात संवत् १८४८ में आपने बीकानेर के सौभागमलजी के साझे में सौभागमल नथमल के नाम से कलकत्ता में चलानी का काम प्रारम्भ किया । इसके पश्चात् संवत् १९५५ में आपने उपरोक्त नाम से निज की फर्म स्थापित की। इसमें आप दोनों भाइयों ने बहुत सफलता प्राप्त की। बड़े भाई आजकल देश ही में रहते हैं तथा नथमलजी फर्म का संचालन करते हैं । आपका कलकत्ता में १६० सूता पट्टी में तथा ५१ लुक्सलेन में उपरोक्त नाम से कपड़ा, जूट तथा इम्पोर्ट का व्यापार होता है। काशीपुर, हटगोला वगैरह स्थानों पर आपके निज के पाट गोदाम हैं । इसके अतिरिक्त इन्द्रचन्द्र सूरजमल के नाम से इस्लामपुर (पुर्णिया) में जूट का काम होता है । सेठ हनुतमलजी के मालचन्दजी, इन्द्रचन्दजी, पूनमचन्दजी, तथा नथमलजी के बालचन्दजी मामक पुत्र हैं । आप सब लोग मिलनसार व्यक्ति हैं तथा फर्म का संचालन करते हैं। इनमें से इन्द्रचन्द के भँवरलालजी तथा बालचन्दजी के हनुमानमलजी नामक एक २ पुत्र हैं ।
सेठ सालमचन्द चुन्नीलाल दुगड़, कलकत्ता
संवत् १९०० के करीब इस परिवार के पुरुष सेठ जेठमलजी दूगड़ कल्यानपुर नामक स्थान से यहाँ आये तथा घी का व्यापार प्रारम्भ किया । उस समय इस व्यापार में आपको अच्छा लाभ रहा ।
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