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________________ प्रोसवाल जाति का इतिहास संघवी दयालदासजी का घराना संघवी दयालदासजी-आप बड़े ही वीर तथा पराक्रमी सजन थे। आप तथा आपके पूर्वज मारवाड़ में रहते थे। तदनंतर आपके साहस तथा वीरता से प्रसन्न होकर उदयपुर के तत्कालीन महाराणा ने भापको उदयपुर बुला लिया । तभी से आपके वंशज उदयपुर में निवास कर रहे हैं। संघवी दयालदासजी ने उदयपुर में आकर अपने साहस, वीरता तथा व्यवस्थापिका शक्ति का परिचय देना प्रारम्भ किया। भापके इन गुणों को देखकर उदयपुर के महाराणा ने आपको प्रधानगी के उस पद पर विभूषित किया जिसे आपने बहुत योग्यत्ता से सम्पादित किया । आपका पूर्ण परिचय हम इस ग्रन्थ के राजनैतिक और सैनिक महत्व' बामक अध्याय के उदयपुर विभाग में दे चुके हैं। भापके सांवलदासजी नामक एक पुत्र हुए । इसके बाद का इतिहास अब तक अप्राप्य है। बेगूं का शिशोदिया खानदान हम ऊपर लिख आये है कि वरसिंहजी के ज्येष्ठ पुत्र रंगाजी का परिवार बेगूं में निवास करता है। इस खानदान में भी बहुत बड़े र व्यक्ति हो गये हैं। शिशोदिया रंगाजी की पांचवीं पीढ़ी में प्रहलादजी नामक एक बड़े नामानित व्यक्ति हुए। शिशोदिया प्रहलादजी-आप बड़े वीर, साहसी तथा प्रभावशाली सज्जन थे। आपने अपने नाम से प्रहलादपुरा नामक एक गाँव भी बसाया था जो आज दौलतपुरा के नाम से मशहूर है। इस गाँव में आज भी आपकी छतरी बनी हुई है। आपने राज्य की बहुत सेवाएँ की जिनसे प्रसन्न होकर तस्कालीन महाराणाजी ने आपको संवत् 1०७२ में एक कुआ, ३५ बीघा जमीन, बाग के वास्ते ४ बीघा जमीन, “नगर सेठ" की इज्जत आदि सम्मानों से सम्मानित किया। आपके वंशजों के पास इसका असली पट्टा तथा यह जागीर आज भी विद्यमान है तथा स्टेट में आज भी आप लोगों का वैसा ही सम्मान चला आता है। प्रहलादजी के वख्तसिंहजी नामक एक पुत्र हुए। शिशोदिया बल्तसिंहजी-ऐसा कहा जाता है कि आपने अपने चाचा अर्जुनसिंहजी के साथ इन्दौर नरेश वीर मरहठा सरदार मल्हारराव होलकर की खूब सेवाएँ की जिनके उपलक्ष्य में आपको रामपुरा भानपुरा जिले में जागीरी तथा अन्य कई सम्मान इनायत किये गये थे। इसका एक रुक्का आपके वंशजों के पास मौजूद है । आपके महलों के खण्डहर आज भी रामपुरा में शिशोदिया के खण्डहर के नाम से मशहूर है। आपके पश्चात् आपके पौत्र शिवलालजी भी बड़े प्रसिद्ध सजन हुए हैं। शिशोदिया शिवलालजी-आप बड़े पोग्य तथा वीर पुरुष थे। आपको बन्दी रियासत की ओर
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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