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शिशोदिया
आनरेरी वकील हैं । आपके कुँवर हमीरमलजी मुरड़िया नामक पुत्र हैं। सुरड़िया जवाहर चन्दजी भी बड़े नामी वकील हो गये हैं ।
कुँवर हमीरमलजी मुरड़िया - आप इस समय एल० एल० बी० में इन्दौर में पढ़ रहे हैं। आप बढ़े तीक्ष्ण बुद्धि वाले, उत्साही तथा मिलनसार सज्जन हैं। जातीय सुधार सम्बन्धी कामों में तथा सार्वजनिक कार्यों में आप बड़ी लगन और उत्साह के साथ भाग लेते हैं। आपको कई बड़े २ महानुभावों की ओर से अच्छे २ सार्टिफिकेट प्राप्त हुए हैं। भोसवाल समाज को आप सरीखे होनहार नवयुवकों से बहुत भाता है।
शिशोदिया
शिशोदिया गौत्र की उत्पत्ति
मेवाड़ के शिशोदिया वंशीय महाराणा कर्णसिंहजी के पुत्र श्रवणजी से इस गौत्र की उत्पचि हुई है। श्रवणजी मे तेरहवीं शताब्दी में यति भी यशोभद्रसूरिजी (शांतिसूरिजी से जैन धर्म की दीक्ष्म ग्रहण कर श्रावक के बारह व्रत अंगीकार किये। तभी से आपके वंशज जैन मतानुयायी हुए तथा शिशोदिया गौत्र के नाम से प्रसिद्ध हुए ।
शिशोदिया खानदान, उदयपुर
शिशोदिया वंश के आदि पुरुष श्रवणजी के वंश में आगे जाकर डूंगरसीजी बड़े नामी व्यक्ति हो गये हैं । आप महाराणा लाखाजी के कोठार के काम पर नियुक्त थे । आपकी सेवाओं से प्रसन्न होकर महाराणाजी ने आपको सिरोपाव तथा सुरपुर नामक गाँव जागीर में प्रदान कर सम्मानित किया था। इस समय भी पुर के पास सरूप्रियों के महल के खंडहर विद्यमान हैं। आप लोग सुरपुर के जागीरदार होने की वजह से सरूप्रिया नाम से मशहूर हुए। ड्रॅगरसीजी ने आदिश्वर का एक मंदिर बनाया जो इस समय इन्दौर स्टेट में रामपुरा नगर के पास है। आपकी कई पीढ़ियों बाद इस वंश में घरसिंहजी नामक व्यक्ति हुए । इनके रंगाजी तेजाजी तथा मियाजी नामक तीन पुत्र हुए। .
शिशोदिया तेजाजी का खानदान उदयपुर में व रंगाजी का बेगू में निवास करता है। तेजाजी की चौथी पीढ़ी में वीरवर सिंघवी दबालदासजी नामक एक अत्यन्त ही नामांकित व्यक्ति हुए ।
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