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रतनपुरा-कटारिया
मेहता चतुसिंहजी-आपने उदयपुर आकर निवास किया। संवत् १८९५ में भापका जन्म हुआ। आपने राजनगर, मेजा, भीमलत आदि परगनों का मुकाता लिया। कुछ समय बाद आप एकलिंगजी के मन्दिर के दरोगा बनाये गये । इसके बाद आप हुकुम खर्च के खजाने पर मुकर्रर किये गये। भापको दरबार ने हाथी की बैठक, अमरशाही पगड़ी, बैंकों की पछेवड़ी, गोठ की जीमण आदि इजतें दी। इसके बाद भाप अंतिम समय तक महाराणा शम्भूसिंहजी की महाराणी के कामदार रहे। आप अपना अत्यधिक समय ईश्वर उपासना ही में लगाते थे। इस तरह पूर्ण धार्मिक जीवन बिताते हुए संवत् १९७३ में आप स्वर्गवासी हुए । आपने सहेलियों की बाड़ी के पास एक बगीचा बनवाया। मेहता चतुरसिंहजी के इन्द्रसिंहजी मदनसिंहजी, मालुमतिहजी तथा जालिमसिंहजी नामक पुत्र हुए और इसी प्रकार मेहता कृष्णलालजी के माधवसिंहजी और गोविन्दसिंहजी नामक २ पुत्र हुए। इन बंधुओं में मालुमसिंहजी का स्वर्गवास संवत् १९६५ में और माधवसिंहजी का संवत् १९८४ में हो गया।
महता चतुरसिंहजी का परिवार मेहता इन्द्रसिंहजी का जन्म संवत् १९३० में हुआ। मापने सरहद के बल के मामलों में और भीलों में अमन अमान रखने में महाराणा फन्दसिंहजी ने कई इनाम दिये भौर रियासत के बाा माफीसर व अंग्रेज आफीसरों में कई उत्तम सार्टीफिकेट दिये। भार सादिया, गढ़ी, झाबुआ भादि जिलों में बहुत असें तक तहसीलदार रहे और बाद में ऋषभदेवजी तथा एकलिंगजी के दारोगा रहे । भापके पुत्र कुन्दनसिंहजी इस समय मेवाड़ के एकाउन्टेष्ट आफिस में इन्सपेक्टर हैं।
बोहता मदनसिंहजी कई ठिकानों के नायव मुंसरीम तथा नायब हाकिम रहे। इस समय कुराबद सिकाने नायब मुखरीम हैं। आपने अपने भाई जालमसिंहजी के पुत्र फतहलालजी को दत्तक लिया है। मेहता मालुमसिंहजी के पुत्र मन हरसिंहजी मेवाड़ में सब इन्सपेक्टर पोलीस हैं। इनके पुत्र प्रतापसिंहजी, सोभागसिंहजी और जीवनसिंहजी हैं। मेहता जालिमसिंहजी कोठारिये के नायब सुसरिम हैं। भापको साधु सत्संग व धार्मिक ग्रंथों के अवलोकन का ज्यादा प्रेम है। आपके पुत्र बलवंतसिंहजी तथा फतहलालजी हैं।
महता कृष्णसिंहजी का परिवार-मेहता कृष्णसिंहजी के बड़े पुत्र मेहता माधवसिंहजी थे। आपने मेवाद में सबसे पहले मेट्रिक पास की। आपकी लिखित “माप विया प्रदर्शनी” नामक पुस्तक का बहुत प्रचार हुआ भापने १५ वर्ष तक परिश्रम कर मेवाड़ के प्रत्येक गाँव की अक्षांस देशांश रेखा का मेवाड़ की बस सारिणी नामक एक ग्रंथ तयार किया था। आपके पुत्र रवसिंहजी साहित्यिक क्षेत्र में प्रेम रखते थे। इनका संवत् १९७२ में २५ साल की आयु में स्वर्गवास हो गया। मेहता गोविन्दसिंहजी के मनोहरसिंहजी तथा सज्जनसिंहजी नामक २ पुत्र हैं।