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पोसवाल जाति का इतिहास
इस समय चीलजी के परिवार में १०.१५ कुटुम्ब उदयपुर में निवास करते हैं। इस परिवार के लोग महाराणा उदयसिंहजी के साथ विसौद से उदयपुर चले आये । वहाँ पर आप लोग प्रातः स्मर्णीय महाराणा प्रताप के महलों के पास देवाली गाँव में रहने लगे।
- मेहता नाथजी-अठारहवीं शताब्दी के अंत में इस वंश में मेहता नाथजी हुए। घरेलू कारणों से कुछ समय के लिए ये कोटे चले गये । संवत् १८०७ के लगभग भाप कोटे से मांडलगढ़ आये और मांडलगढ़ किले पर फौज के अफसर बनाये गये । साथ ही नवलपुरा नामक एक गाँव भी आपको जागीर में बख्शा गया। मांडलगढ़ किले पर आपकी बनवाई हुई बुर्ज अब भी माथबुर्ज के नाम से मशहूर है । आपकी हवेली किले के सदर दरवाजे पर बनी हुई है। आपने किले के नजदीक एक पहाड़ पर बिजासन माता का मंदिर बनवाया। इसी तरह अपनी हवेली के सामने श्रीलक्ष्मीनारायण का मन्दिर बनवाया। इस मंदिर की व्यवस्था के लिए राज्य की ओर से नवलपुरे में डोली (माफी की जमीन) है तथा शादी गमी के मौके पर मांडलगढ़ की पंचायत से लागत वगैरा आती है। आपका परिवार पुष्टि मार्गीय वैष्णव धर्मावलम्बी है। संवत् १८६९ में आपका स्वर्गवास हुआ।
मेहता लक्ष्मीचन्दजी-आप मेहता नाथजी के पुत्र थे। अपने पिताजी के साथ कई लड़ाइयों में आप सम्मिलित हुए थे। अंत में सम्बत् १८७३ में खाचरोल की घाटी में युद्ध करते हुए आप वीरगति को प्राप्त हुए। उस समय आपके पुत्र जोरावरसिंहजी और जवानसिंहजी क्रमशः ५ और २ वर्ष के थे। ऐसे कठिन समय में इनकी चतुर माता ने इन दोनों शिशुओं का लालन पालन किया। इनको मदद देने के लिये महाराणा ने मांडलगढ़ के मेहता देवीचन्दजी को लिखा था। लेकिन बजाय मदद देने के इनका जागीरी का गाँव भी जस हो गया। इन दोनों शिशुओं के बालिग होने पर महाराणाजी ने इनके नाम का नवलपुरा गाँव संवत् १९०४ में ५५) साल में इस्तमुरार कर दिया। यह गाँव अब तक इस परिवार के पास चला आ रहा है। इसका रकबा करीब १५ हजार बीघा है। जब दरबार की नाराजी के कारण मेहता रामसिंहजी मेवाड़ छोड़कर बाहर चले गये उस समय जोरावरसिंहजो ने उनका साथ दिया और उनके साथ रहते हुए व्यावर में स्वर्गवासी हुए। इनके पुत्र मोखमसिंहजी हुए। मोखमसिंहजी के पुत्र रघुनाथसिंहजी तथा पौत्र हरनाथसिंहजी इस समय विद्यमान हैं।
मेहता जवानसिंहजी--ये बड़े प्रभावशाली पुरुष हुए। इन्होंने अपनी स्थिति को बहुत उच्चत किया । इनको दरवार से कई बार सिरोपाव मिले । ये बड़े बहादुर प्रकृति के आदमी थे। १९१० में इनका स्वर्गवास हुआ। इनके चतुरसिंहजी और कृष्णलालजी नामक २ पुत्र हुए। ये दोनों धार्मिक वृत्ति के पुरुष थे।