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मांसवात जाति का इतिहास
सर पर महाराज मानसिंहजी की इच्छा न होने पर भी मेहता जसरूपजी कुछ समय के लिए जोधपुर छोड़ कर म्यावर आ गये । इस पर मारवाद के दस प्रमुख सरदारों ने महाराजा की आज्ञा से भापके पास एक पाश्वासन पत्र भेजा था जो इस प्रकार था।
श्रीनाथजी सहाय
मुहताजी श्री जसरूपजी सूं दस सिरदारां रो जुहार पंचावसी तथा राजरा टावर कबीला भाई तालकदार सुदा खात्र जमां सु खुसी आवे जण ठिकाणे रहो कठी कानी सू कैदेई खेचल होषणा देसां नहीं ने श्री हुजूर तूं आजीविका ४०००) री इनायत हुई जिणमें तफावत पड़न देसा नहीं ने साहचरी चीखती खातरी म्हांहा वणता खेवट करने कराय देखा इण में तफावत पड़न देसा नहीं म्हारा इसटदेवरी आण है ने भी हुजूररा फरमावणा रौँ मारो वचन है संवत् १८९६ रा पोस सुद २"
इस रुख के नीचे पोकरन, भाद्राजन भासोप इत्यादि दस ठिकानों के जागीरदारों के दस्तखत थे। प्यावर भाकर मेहता जसरूपजी ने नल डिक्सन को ग्यावर आवाद करने में बड़ी मदद दी। इससे कर्नल डिक्सन आपसे बहुत खुश हुए। संवत् १९०९ में महाराजा मानसिंहजी ने भाप को फिर से जोधपुर बुलाया मगर भाप मार्ग में ही लकवे से ग्रसित हो गये और जोधपुर पहुंचते २ स्वर्गवासी हो गये।
मेहता जसरूपजीने भोसवाक जातिके याचकों और भोजकों को “लाख पसाब" नामक वरदान दिये जिसकी कीर्ति का उल्लेख भाजभी सेवक लोग कविताओं में बड़े उत्साह के साथ करते हैं। महाराज मानसिंहजी के जसरूपजी की सेवाओं से प्रसव होन समय २ पर कर्मावास, बोरावास, धवा आदि करीब १२००४) की रेख के गाँव जागीर में दिये। इनके साथ भापको पालकी, सिरोपाव आदि के सम्मान से भी सम्मानित किया था। आपके पाँच पुत्र हुए जिनके नाम क्रमशः प्रतापमलजी, बच्छराजजी, बागमलजी, फतेचन्दजी तथा गिरधारीमलजी थे। इनमें मेहता प्रतापमलजी के मगनराजजी, शिवराजजी, उम्मैदराज जी तथा जगनराजजी नामक चार पुत्र हुए।
' मेहता मगनर जजी-आप महाराजा तखतसिंहजी के समय में महकमें हवाला के अध्यक्ष ( Land Revenue Superintendent ) के पद पर रहे। आपने बड़ी ईमानदारी से राज्य का काम
• याचक चारण और भाटों को व्याह शादी के अवसर पर जो दान दिया जाता है उसे साधारणतः त्याग कहा माता है। मगर यही त्याग जब हाथी, घोडे, ऊँट आदि के रूप में हजारों रुपयों के मूल्य का होता है तब इसे लखपसाब