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ओसवाल जाति का इतिहास
महाराजा भीमसिंहजी के बाद संवत् १८६३ में महाराजा मानसिंहजी गद्दी पर विराजे । भाप महाराजा भीमसिंहजी के भतीजे थे। जिस समय आप गद्दी पर विराजे उस समय महाराजा भीमसिंहजी की एक रानी गर्भवती थी । कुछ सरदारों ने मिलकर उसे तकेटी के मैदान में कारखा । वहीं पर उसके गर्भ से एक बालक उत्पन्न हुआ, जिसका नाम धोकलसिंह रखा गया। इसके बाद उन सरदारों ने उसे पोकरण के तरफ भेज दिया पर महाराजा मानसिंहजी ने इस बात को बनावटी मानकर उसका राज्याधिकार अस्वीकार कर दिया।
___ महाराजा मानसिंहनी ने गद्दी पर बैठते ही अपने शत्रुओं से बदला लेकर उन लोगों को जागीरें दी जिन्होंने विपत्ति के समय सहायता की थी। इसके बाद उन्होंने सिरोही पर फौज भेजी, क्योंकि वहाँ के राव ने संकट के समय में इनके कुटुम्ब को यहाँ रखने से इंकार किया था। कुछ ही समय में सिरोही पर इनका अधिकार हो गया । घाणेराव भी महाराज के अधिकार में आ गया।
वि० सं० १८६१ में धौंकलसिंहजी की तरफ से शेखावत राजपूतों ने डीडवाना पर आक्रमण किया, परन्तु जोधपुर की फौज ने उन्हें हराकर भगा दिया। इसी बीच में एक नई परिस्थिति उत्पन्न होगई। इतिहास के पाठक जानते हैं कि उदयपुर के राणा भीमसिंहजी की कन्या कृष्णाकुमारी का विवाह जोधपुर के महाराजा भीमसिंहजी के साथ होना निश्चित हुआ था। परन्तु उनके स्वर्गवासी हो जाने के पश्चात् राणाजी ने उसका विवाह जयपुर के महाराजा जगतसिंहजी के साथ करना चाहा । जब यह समाचार मानसिंहजी को मिला तब उन्होंने जयपुर महाराज जगतसिंहजी को लिखा कि वे इस सम्बन्ध को स्वीकार न करें । क्योंकि उस कन्या का वाग्दान मारवाड़ के घराने से हो चुका है पर जब जयपुर महाराज ने इस पर कुछ ध्यान नहीं दिया तब महाराजा मानसिंहजी ने संवत 1८६९ के माध में जयपुर पर चढ़ाई कर दी। जिस समय ये मेड़ता के पास पहुंचे उस समय इनको पता लगा कि उदयपुर से कृष्णाकुमारी का टीका जयपुर जा रहा है। यह समाचार पाते ही महाराज ने अपनी सेना का कुछ भाग उसे रोकने के लिये भेज दिया। इससे लाचार होकर टीकावालों को वापिस उदयपुर लौट जाना पड़ा।
इस बीच जोधपुर महाराज ने इन्दौर के महाराजा जसवंतराव होल्कर को भी अपनी सहायता के लिये बुला लिया था। जब राठोड़ों और मरहठों की सेनाएँ अजमेर में इकट्ठी होगई तब लाचार होकर जयपुर महाराज को पुष्कर नामक स्थान में सुलह करना पड़ी। जोधपुर के इन्द्रराजजी सिंघी और जयपुर के रतनलालजी (रामचन्द्रजी) के उद्योग से होलकर महाराज ने बीच में पड़कर जगतसिंह की बहिन का विवाह मानसिंहजी के साथ और मानसिंहजी की कन्या का विवाह जगतसिंहजी के साथ निश्चित करवा दिया । वि० सं० १८७३ के अश्विन मास में महाराजा जोधपुर लौट आये । पर कुछ ही दिनों के बाद लोगों
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