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राजनैतिक और सैनिक महत्व
सम्वत् १८३४ में जब मरहठों की फौजें ढूंढाड़ * लूट रही थीं, तब वीरवर भीवराजजी १५००० सेना के साथ वहाँ पर भेजे गये । जयपुर और जोधपुर की फौजों ने मिलकर मरहठों को शिकस्त दी । इस युद्ध में सिंघी भींवराजजी ने बड़ी वीरता दिखलाई जिसकी प्रशंसा खुद तत्कालीन महाराजा जयपुर ने की थी । तत्कालीन जयपुर नरेश ने जोधपुर दरबार को जो पत्र लिखा था, उसमें निम्नलिखित वाक्य थे । " भीमराजजी और राठौड़ वीर हों और हमारी आम्बेर रहे
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अर्थात- भींवराजजी और राठोड़ वीरों की ही बदौलत इस समय आम्बेर की रक्षा हुई है। कहने का अर्थ यह है कि महाराजा विजयसिंहजी के शासन काल में भी ओसवाल मुस्सुदियों ने बड़े ९ कार्य किये जिनमें से कुछ के उदाहरण हमने ऊपर की पंक्तियों में दिये हैं ।
महाराजा मानसिंहजी और
सवाल
मुत्सुद्दियों की कारगुजारी — महाराजा विजयसिंहजी के बाद संवत् १८५० में महाराजा भीमसिंहजी मारवाड़ के राज्य सिंहासन पर बिराजे। इनके समय का शासन सूत्र भी प्रायः ओसवाल मुत्सुद्दियों के हाथ में था। पर आपके समय में कोई ऐसी घटना नहीं हुई जिसका इतिहास विशेष रूप से उल्लेख कर सके । इसलिये हम आपके राज्यकाल को छोड़कर महाराजा मानसिंहजी के काकाल की ओर अपने पाठकों का ध्यान आकर्षित करते हैं ।
जिस समय महाराजा मानसिंहजी ने जोधपुर के शासन सूत्र को अपने हाथ में लिया था उस समय सारे भारतवर्ष में अराजकता की ज्वाला सिलग रही थी । मुगल साम्राज्य अपनी अंतिम सांसे ले रहा था और मरहठा वीर छत्रपति शिवाजी के आदर्शों को छोड़ कर इधर उधर लूटमार में लगे हुए थे। राजस्थान के राजागण एकता के सूत्र में अपने आपको बांधने के बजाय एक दूसरे के खून के प्यासे हो रहे थे । भारतवर्ष की इन बिखरी हुई शक्तियों का फायदा उठाकर ब्रिटिशसत्ता अपने पैर चारों ओर फैला रही थी । महाराजा मानसिंहजी का राज्यकाल एक दुःखान्त नाटक है जिसमें हमें हिन्दुस्थान की सारी निर्बलताओं के दर्शन होते हैं जिनसे कि यह भारतवर्ष इस अवस्था को पहुँचा है ।
कहने की आवश्यकता नहीं कि ऐसे विकट समय में ओसवाल मुत्सद्दियों ने महाराजा मानसिंह सदा चिरस्मरणीय रहेंगी । इन सेवाओं के विषय में कुछ राजस्थान की राजनैतिक परिस्थिति पर भी कुछ प्रकाश
जी की जो अमूल्य सेवाएँ की हैं वे इतिहास में लिखने के पूर्व यह आवश्यक है कि तत्कालीन
डाला जाय ।
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हूँ उस प्रांत का नाम है जहाँ पर वर्त्तमान में जयपुर-राज्य स्थित है ।
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