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मेहता बागरचा
की कामदारी करते हुए संवत् १८८० में स्वर्गवासी हुए। इनके पुत्र मेहता रिधकरणजी तथा राजमलजी हुए । मेहता रिधकरणजी - आप अर्जुनोत भाटी खानदान के वकील डोकर संवत् १८०३ में जोधपुर आगे और यहीं आबाद होगये। संवत १८९६ में बने हुए हुक्म नामे के बनवाने में आपने भी बहुत सहयोग लिया था । आप अपने समय के वकीलों में प्रसिद्ध वकील माने जाते थे। संवत् १९२५ में आपका स्वर्गवास हुआ। आपके उदयराजजी, सिद्धकरणजी, किशनकरणजी और मगनराजजी नामक ४ पुत्र हुए। मेहता उदयराजजी खेजड़ला तथा साथण के वकील रहे । संवत् १९३९ में इनका स्वर्गवास हुआ । इनके पौत्र विजयराजजी उगमराजजी आदि इस समय विद्यमान हैं । '
मेहता सिद्ध करणजी आप भी रायपुर, खेजड़ला और साथण के वकील रहे । आप सिद्धान्त के बढ़े पक्के और निर्भीक तबियत के पुरुष थे । संवत् १९६५ में इनका स्वर्गवास हुआ। आपके छोटे भ्राता किशन करणजी के ५ पुत्र हुए, इनमें सूरजकरणजी तथा सुकनकरणजी स्वर्गवासी होगये हैं, तथा करणराजजी केवलराजजी और रंगराजजी विद्यमान हैं। सूरजकरणजी के पुत्र सज्जनराजजी हैं।
मेहता ऋधकरणजो सब से छोटे पुत्र मगनराजजी विद्यमान हैं। आपका जन्म संवत् १९१२ में हुआ। आपको पुरानी बातों की अच्छी याददास्त है । आपके बड़े पुत्र जोगराजजी का संवत् १९८५ में स्वर्ग वास होगया है । इनके पुत्र कुंदनराजजी तथा अकलराजजी पढ़ते हैं। मेहता मगनराजजी के छोटे पुत्र मेहता भैरूराजजी हैं। आपका जन्म संवत् १९४६ में हुआ । आपने सन् १९२९ में ओसवाल नामक पत्रिका के सम्पादन में भाग लिया तथा इसी तरह के जाति सुधार के कामों में भाग लेते हैं। आपके पुत्र चन्दनराजजी स्टेट सर्विस में हैं तथा अमृतराजजी और रतनराजजी पढ़ते हैं ।
मेहता रतनराज - इस प्रतिभाशाली बालक की उम्र केवल ८३ वर्ष की है। यह वालक प्रारम्भ से ही बड़ी तीक्ष्ण बुद्धि का तथा मेधावी है। इसने अपनी छोटो अवस्था में हिन्दी और अंग्रेजी में जो ज्ञान प्राप्त किया है वह अत्यन्त ही प्रशंसनीय तथा भाश्वर्य की वस्तु है। इस बालक को जिन २ महानुभावों मे देखा है उन्होंने इसकी मुग्ध कण्ठ से प्रशंसा करते हुए बहुत प्रसन्नता जाहिर की है। हिन्दी के अनेक समाचार पत्रों एवं मासिक पत्रिकाओं में इस बालक के फोटो छप चुके हैं । इसके अलावा इसे कई सार्टिफिकेट एवं प्रशंसापत्र प्राप्त हुए हैं। पाठकों की जानकारी के लिये श्रीउमासङ्करजी एम० ए० द्वारा लिखित बॉम्बे क्रानिकल में प्रकाशित लेख का कुछ अंश हम नीचे देते हैं ।
Master Ratan, a young Marwari Jain child of seven years, exhibits in him
a rare genius. Surprisingly enough, he could speak fairly fluent English and could talk well almost on any topic at the tender age of bare four, and through the natural
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