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________________ भानाति का इतिहास छोटा मंदिर बनवाया और २५००) नगर देवश्री संघ के जिम्मे करवी । सरकार सुक्तान जहविगम साहिया ने अपने शाहजादे नवाब हमीदुक्कायां साहिब की जनानी ज्योदी की विजारत का काम आपके सुपुर्द किया जो आपके गुजरने के एक लाक तक भापके पुत्र के पास रहा। आप के छोटे पुत्र मोतीकालजी का अंतकाळ संवत १९९९ हुआ। आपने संवत् १९०२ में ७ क्षेत्रों के किए ५ हजार रुपयों का दान धार्मिक काव्यों के किये विकाका । आपका स्वर्गवास संवत् १९०२ की फागुन यदी अमावस को हुआ ।. वर्तमान में खेठ हीराकाजी के बड़े पुत्र राय सेठ मुकंचन्दकी कहानी विद्यमान है आपका जन्म संवत् १९४१ में हुआ। आपके जिम्मे सरकार सुल्तान वहां बेगम साहिबा के परम सुल्तानपुर (भोपाक स्टेट) की खजाना किया। आपने ४० हजार रुपयों में भोपाल स्टेट के मनकापुर और इसनिया नामक २ मोजे किये। संवत् १९८३ में मूलचन्द सरदारमक के नाम से मलकापुर में दुकान की गई ।१ सार्की तक बहूम नयान उमेदुमका साहिब की क्योड़ी की तिजारत का काम भी आपके जिम्मे रहा। युरोपीय वार के समय पर स्टेट मे आपको पारको अण्ड का ट्रेडरर बनाया। आपने आठ सालों तक ऑनरेरी मजिस्ट्रेडशिप का कार्य किया । सन् १९९८ में की पदवी इनायत की। सन् १९१२ में आपको भोपाक स्टेट ने "स्टेट आप स्थानीय पवे० जैनापाठशाला के प्रेसिडेन्ट और गौशाला के १२ शहर के प्रतिष्ठित पुरुष हैं। आपके पुत्र सरदारमकजी का जन्म समझदार युवक हैं। इन्होंने एक० ए० तक शिक्षा पाई है। भोपाल सरकार ने आपको "राब" राजांची" बनाया। वर्तमान में सालों से संचालक है। आप भोपाल १९९८ में हुआ। आप उत्साही तथा सेठ जवाहरमल सुखराज सलवायी, पूना इस परिवार के पूर्व सेठ भीमाजी कल्याणी के पुत्र सेठ पूनमचन्दजी ख्वाणी अपने मूळ निवास स्थान फोसेकाव ( जोधपुर स्टेट) से संवत् १९६० में पूना भावे । तथा पूना छावनी में सराफी व्यवहार चालू किया। आप संवत् १९०० में स्वर्गवासी हुए। आपके जवाहरमलजी, रतनचन्द्जी कपचंदजी और छोगामकजी नामक पुत्र हुए। जवाहरमलजी ललवाणी - आपका जन्म संवत् १९११ में हुआ। आपने २१ सांक की वचतक सेठ इतनाजी सेवाजी दुकान पर सुनीमात की। पश्चात् १९५५ से बर्तनों का अपना वह व्यापार आरंभ किया। और इस व्यापार में आपने अच्छी सम्पत्ति उपार्जित की। आपने स्थानीय दादावाड़ी के उदार तथा नवीन बिल्डिंग बनवाने में विशेष परिश्रम किया। जातीय पंचायती में मेक बनाये रखने में आप * १९६
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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