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मोसवाल जाति का इतिहास
की हैं । आपको संवत् १९६२ में दिल्ली की जैन समाज ने जैन बिरादरी का काम सौंपा । जिस समय आपको यह काम सौंपा गया था उस समय उक्त संस्था में १८ ) मासिक की आमदनी थी। आपने अपनी बुद्धिमानी से इसकी आय बढ़ाते २ करीब १२००) मासिक के कर दी तथा देहली में एक बहुत ही भव्य स्थानक बनवाया। इस स्थानक के लिये आपने किसी से भी कुछ चंदा नहीं लिया। अभी तक इस स्थानक में दो लाख रूपया लग चुके हैं। मकान अभी तक बन रहा है । धार्मिक प्रेम के साथ ही साथ आपका विद्यादान की ओर विशेष लक्ष्य रहा है। आपने सन् १९२० में महावीर जैन मिडिल स्कूल स्थापित किया, जो सन् १९२८ से हॉयस्कूल हो गया है तथा जिसका मासिक खर्च १२००) है । इसी प्रकार आपके प्रयत्नों से महावीर जैन लायब्ररी, महावीर जैन कम्या पाठशाला, महावीर जैन विद्यालय आदि २ सार्वजनिक संस्थायें स्थापित हुईं जिनसे देहली की जनता बहुत लाभ उठा रही है ।
तदनुसार ही आपके प्रयत्न से रोहतास में ११५००) में एक मकान लिया गया और वहाँ स्थानक बनाया गया। तदनंतर इस पर कुछ झगड़ा खड़ा होने पर आपने १०००) खर्च करके इसे तथा २१००) खर्च करके सब्जी मण्डी वाली धर्मशाला को जनता की सेवा निमित्त खुली रक्खी ।
सेठ जवरीमल सुगनचन्द नाहर का खानदान, अजमेर
इस परिवार के पूर्वज नाहर मेघाजी अजमेर से ४ कोस की दूरी पर राजोसी नामक गाँव में रहते थे। इनके पुत्र भालूजी संवत् १७७५ में अजमेर आये। भालूजी के पुत्र माणकजी हुए तथा इनके धनाजी, फतेचन्दजी और बच्छराजजी नामक तीन पुत्र हुए। फतेचन्दजी के नाम पर रूपचंदजी दलक आये । आपका स्वर्गवास संवत् १९२८ में हुआ। आपके हरक बन्दजी, हजारीमलजी, आसकरणजी, सिद्धकरणजी तथा छोटूलालजी नामक ५ पुत्र हुए। इनमें हरकचन्दजी माहर वष्टराजजी के नाम पर दत्तक गये । इनका संवत् १९३४ में स्वर्गवास हुआ।
हजारीमलजी नाहर - आपने संवत् १९१९ में मेट्रिक पास किया। आप पटना और अजमेर के तहसीलदार और अजमेर म्युनिसिपैलेटी के सेक्रेटरी और मेम्बर रहे। संवत् १९४२ में आपने हिन्दू मुसलमानों के बीच समझौते में जोरों से भाग लिया। आपके पुत्र नाहर जोधराजजी एफ० ए० तक पढ़े हैं, तथा गोटे का व्यापार करते । इनके पुत्र जावंतराजजी तथा जयचन्दजी विजयचन्दजी हैं। इनमें जावं तराजजी छोटूलालजी के नाम पर दत्तक गये हैं।
जंवरीमलजी नाहर - आप आसकरणजी माहर के पुत्र हैं। तथा भजमेर की भोसवाल समाज में ६०६..