SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 752
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मौसवाल माति का इतिहास इन सेवाओं से प्रसन्न होकर महाराणाजी ने आपको बलेणा घोड़े का सम्मान तथा भोलखेड़ा और कुछ गांव जागीरी में इनायत किये थे। आपके जोरावरसिंहजी नामक एक पुत्र हुए। सुराणा जोरावरसिंहजी-आप भी बड़े समझदार, बुद्धिमान तथा कार्यकुशल व्यक्ति थे। आप के द्वारा उदयपुर राज्य के कई महत्वपूर्ण कार्य हुए है। आपने सरदारों और उमरावों को समझाने में तथा महाराणाजी और उमरावों के बीच की संधि के आशय को कर्नल रोबिन को समझाने में अग्र भाग लिया था। इसी प्रकार आप सरूपशाही रुपये के सिक्के के समय मीमच के रेसिडेण्ट को समझाने के लिये भी भेजे गये थे। आपने सं० १९१५ में डाकूमीणों का दमन भी किया था। आप राजकीय कामों में चतुर होने के साथ ही साथ बड़े प्रबन्ध कुशल सज्जम भी थे। आपने चित्तौड़गढ़ की हाकिमी के पद पर रह कर इसकी इतनी सुन्दर व्यवस्था की कि जिससे उसकी वार्षिक आय ५७०००) से बढ़ कर एक लाख होगई। कहने का तात्पर्य यह है कि आप बड़े ही बुद्धिमान, राजनीतिज्ञ प्रबन्ध कुशल तथा कार्यकुशल सज्जम थे। आपने उदयपुर राज्य की कई अमूल्य सेवायें की जिनसे प्रसन्न होकर महाराणाजी ने छड़ी रखने का हुक्म, बलेणा घोड़ा, दरबार में बैठक की इजत, दरबारी पोशाक, जीकारे का सम्मान, नाव की बैठक आदि आदि सम्मान प्रदान किये थे। इतना ही नहीं आपकी सेवाओं के उपलक्ष्य में बासणी गांव जागीरी में वक्षा जो आज तक इस खानदान के पास है। इसके अतिरिक्त आपको कई रुक्के तथा कई बार इनाम भी बक्षे गये थे। उदयपुर दरबार के अतिरिक आपका इस राज्य के बड़े २ जागीरदारों में भी अच्छा सम्मान था । आपके दौलतसिंहजी नामक एक पुत्र हुए। सुराणा दौलतसिंहजी-आप भी अपने पिताजी की तरह होशियार तथा प्रबन्ध कुशल सज्जन थे। आप संवत् १९४४ में भीडर के मौत मिन्द मुकर्रर किये गये। इस पद पर आपने बड़ी योग्यता से काम किया। इसी प्रकार कई ठिकानों के मौत मिन्द भी मुकर्रर किये गये। तदनन्तर भापकी कार्य कुशलता से प्रसन्न होकर आपको अकाउटंट जनरल मेवाड़ का पद को प्रदान किया गया। इन सब पदों पर जवाबदारी के साथ काम करते हुए आप स्वर्गवासी हुए। आपकी कारगुजारी के उपलक्ष्य में आपके पूर्वजों के सम्मान आपको पुनः इनायत हुए तथा कई खास रुक्के भेकर आपकी सेवाओं का समुचित भादर किया। आपके रतनसिंहजी जसवन्तसिंहजी तथा जीवनसिंहजी नामक तीन पुत्र हुए। सुराणा रतनसिंहजी कानोड़ टिकाने के मोतमिंद, टकसाल के दरोगा आदि स्थानों पर मुकर्रर किये गये। इस परिवार के विवाहोत्सव तथा अन्य इसी प्रकार के उत्सवों पर उदयपुर के महाराणाओं ने कई बार बहुत सी रकम प्रदान कर इस खानदान के सम्मान में वृद्धि की थी। सुराणा रतनसिंहजी
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy