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________________ सुराली होने के पश्चात् अंत में विजयश्री सूरजी को ही मिली । पवन लोग पराजित होकर भाग खड़े हुए। जब सूरजी विजयी होकर दरबार में पहुँचे तब महाराज ने आपके कार्यों की बड़ी प्रशंसा की। और कहा, वास्तव में तुम "सूरराणा" हो । तबसे उनके वंशज सुरराणा से सुराणा कहलाने लगे । इसी प्रकार और भाइयों से और २ गोत्रों की उत्पत्ति हुई। जैसे संखजी के साँखला, सांबलजी से सिवाल इत्यादि । सांवलजी के बड़े पुत्र हृष्टपुष्ट थे अतएव लोग उन्हें संड मुसंड कहा करते थे असएव इनकी संताने सांड कहलाई । सांवलजी के दूसरे पुत्र सुक्खा से सुखाणी, तीसरे सालदे से सालेचा और चौथे पुत्र पूनमदे से पुनमियां शाखा प्रकट हुई । इसी सुराणा परिवार में आगे चलकर कई प्रसिद्ध २ सुराना भी एक थे । आप तत्कालीन बीकानेर दरबार के दीवान थे। युद्ध किये एवम् उनमें सफलता प्राप्त की। आप बड़े राजनीतिज्ञ, विशेष परिचय इसी ग्रंथ के राजनैतिक और सैनिक महत्व नामक शीर्षक में दिया गया है । व्यक्ति हुए। उनमें मेहता भमरचन्दजी आपने बीकानेर राज्य की ओर से कई वीर और बहादुर व्यक्ति थे । आपका चूरू का सुराणा परिवार चूरू बीकानेर राज्य में एक छोटासा किन्तु सम्पद्म नगर है। यहाँ सुराणाओं का एक प्रतिष्ठित घराना है। यह वंश अति प्राचीनकाल से सम्पन्न तथा राज्य में बहुत गण्यमान्य रहा है। यह वंश लगभग विक्रमी संवत् १८०० में नागौर से सुरू आकर बसा था। इस वंश वाले श्री श्वेताम्बर तेरापंथी जैनी हैं। इस घराने में बड़े-बड़े वीर हो गये हैं । जिनमें सेठ जीवनदासजी का नाम विशेष रूप से उल्लेखमी है। प्रसिद्ध है कि उन्होंने सिर कट जाने पर भी चिरकाल तक तलवार चलाई थी जिससे वे जुझार योद्धा प्रसिद्ध हुए । आज तक स्त्रियाँ उनकी वीरता के गीत गाती हैं । जीवनदासजी के चार पुत्र थे, जिनमें सबसे बड़े पुत्र सेठ सुखमलजी चूरू आकर बसे । कलकत्ते की मेसर्स " तेजपाल वृद्धिचन्द” नाम की प्रसिद्ध फर्म इसी परिवार की है। इस फर्म में कपड़े और बैकिंग का काम होता है। इसका एक छाते का भी कारखाना है, जिसमें प्रतिदिन ५०० दर्जन छाते तैयार होते हैं । यह कारखाना भारत भर में सबसे बड़ा है। श्री रुक्मानंदजी ने विक्रमी संवत् १८९३ में इस फर्म को स्थापित किया था । उस समय कलकता में मारवादियों की सिर्फ पाँच दस दूकानें थी । उन्होंने इसका " रुकमानन्द वृद्धिचंद" नाम रखा । पीछे संवत् १९६२ में जब रुकमाजी के वंशज दो विभागों में बढ गये तब से इस फर्म पर "तेजपाल वृद्धिचन्द” नाम पड़ने लगा । सेठ सुखमलजी के वंशजों ने उस जमाने में जब भारतवर्ष में सर्वत्र रेलवे लाइनें नहीं चुकी थीं २०७
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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