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________________ पोसवाल जाति का इतिहास चीजों पर सायर का पूरा महसूल माफ कर सम्मानित किया । इतना ही नहीं आपको अपने नौकरों के लिये दीवानी तथा फौजदारी के अधिकार भी दिये । आप इस परिवार में बड़े नामाङ्कित व्यक्ति हो गये हैं। आपने पुष्कर में एक हवेली तथा पुष्कर के रास्ते में एक सुन्दर बगीचा बनवाया जो आज भी आपकी अमरकीति का घोतक है आपने इसी प्रकार कई सार्वजनिक कार्यों तथा परोपकारी संस्थाओं को खुले हृदय से दान दिया। यहां के विक्टोरिया हॉस्पिटल को भी आपने अच्छी सहायता प्रदान की। आपके इन कार्यों से प्रसन्न होकर ब्रिटिश गवर्नमेंट ने आप को सन् १८९५ में "रायबहादुर" के सम्माननीय खिताब से विभूषित किया । ब्रिटिश गवर्नमेण्ट और देशी रियासतों पर आपका बहुत अच्छा प्रभाव रहा । आपको गवर्नमेण्ट की ओर से सैकड़ों सार्टीफिकेट प्राप्त हुए, जिनमें आपकी व्यापारिक प्रतिभा और आपके सुन्दर व्यवहार की बहुत प्रशंसा की गई है। उस समय आप कई रियासतों और रेसिडेन्सियों के वैर थे और कई स्थानों पर आपके शाखाएँ थी। आपके वृद्धावस्था में अधिक बीमार रहने से अपकी फर्म का काम कच्चा रह गया। आपका स्वर्गवास संवत् १९६० में हुआ। __ आपके भी कोई संतान न होने से आपने अपने नाम पर कल्याणमलजी उड्डा को दत्तक लिया । . इस समय इनके खानदान में आप विद्यमान हैं । भापके पुत्र बन्सीलालजी बी० ए० एल० एल० बी० हैं । सेठ धरमसीजी का खानदान जयपुर के - (सेठ गुलाबचन्दजी डड्डा जयपुर) सेठ पदमसीजी के छोटे भाई सेठ धरमसीजी के चार पुत्र हुए जिनके नाम क्रमसे कस्तूरचन्दजी, कपूरचन्दजी, किशनचन्दजी और रामचन्दजी था। इनमें से रामचन्दजी के क्रमशः रतनचन्दजी, पूनमचंदजी और सागरचन्दजी नामक तीन पुत्र हुए शाह सागरचन्दजी के लखमीचन्दजी और गुलाबचन्दजी नामक दो पुत्र हुए। सेठ गुलाबचन्दजी आप ओसवाल समाज के अत्यन्त प्रतिष्ठित समाज सेवकों में माने जाते हैं। आपने उस समय में एम० ए० पास किया था जिस समय ओसवाल समाज में कोई भी दूसरा एम० ए० नहीं था। सामाजिक गति विधि के सम्बन्ध में आपके विचार बहुत मंजे हुए और अनुभव युक्त हैं। भाप ओसवाल • आपका कौटुम्बिक परिचय बहुत प्रयत्न करने पर भी हम लोगों को प्राप्त न हो सका। इसलिए जितना हमारी स्मृति में था उतना ही प्रकाशित कर सन्तुष्ट होना पड़ा-लेखक ।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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