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________________ ढढ्ढा बड़ी कृपा थी। ऐसा कहा जाता है कि आप उनके राखीवन्द भाई थे। उस समय इस फर्म का इन्दौर में बड़ा प्रभाव था। आपका स्वर्गवास संवत् १८७५ में हुमा । आपके शवदाह घाट दरवाजा स्थान पर जयपुर में हुआ वहां आपकी छत्री बनी हुई है। आपके राजसीजी, प्रतापसीजी और तेजसीनी मामक तीन पुत्र हुए। इनमें सेठ राजसीजोजिनका दूसरा नाम जेठमलजी भी था का देहान्त संवत् १८६० में आपने पिताजी की मौजूदगी में ही हो गया था। आपके दाह स्थान पर भी घाट एमजे पर एक चबूतरा बना हुआ है। आपके छोटे भाई तेजसीजी हुए। ____ सेठ तेजसीजी ने बीकानेर के गोगा दरवाजे के मन्दिर के निकट एक विश्रान्ति गृह बनाया तथा इस मन्दिर पर कलश चढ़या । आपने जयपुर के सांगानेर दरवाजे के पास एक पार्क की नींव डाली जिसमें भागे जाकर आपके पुत्र सदासुखजी ने एक विष्णु का मन्दिर बनवाया। इस पार्क और मन्दिर के बनवाने में करीव ७५०००) खर्च हुआ होगा। आपके नैनसुखजी नामक एक पुत्र हुए। डहा नैनसीजी एक नामांकित पुरुष हुए। उस समय इस परिवार की “पदमसी नैनसी" के नाम से बड़ी प्रसिद्ध फर्म थी । इस फर्म की कई स्थानों पर शाखाएँ खुली हुई थीं। इस फर्म का व्यापार उस समय बहुत चमका हुआ था और कई रियासतों से इसका लेन देन भी होता था । इस फर्म के नाम से कई रियासतों ने रुक्के प्रदान किये हैं जिनसे मालूम होता है कि यह फर्म उस समय बड़ी प्रतिष्ठित तथा बहुत ऊँची समझी जाती थी । इन्दौर नगर में इस फर्म का बहुत प्रभाव था । यह फर्म यहां के ११ पंचों में सर्वोपरि तथा अत्यन्त प्रतिष्ठित मानी जाती थी। इन्दौर-स्टेट में भी इसका अच्छा सम्मान था । महाराजा काशीराव तथा तुकोजीराव होलकर बहादुर के समय तक इस फर्म का व्यवसाय बहुत चमका हुआ था। इस फर्म के नाम पर उक्त नरेशों ने कई रुक्के प्रदान किये हैं जिनमें व्यवसायिक बातों के अतिरिक्त इस फर्म के साथ अपना प्रेमपूर्ण सम्बन्ध होने का जिक्र भी किया है। इस फर्म को उक्त परिवार के सज्जनों ने बड़ी योग्यता एवं व्यापार चातुरी से संचालित किया था। नैनसीजी के पश्चात् उनके पुत्र उदयमलजी हुए इनके समय में संवत् १९१६ में यह परिवार जयपुर से अजमेर चला आया और तभी से इस परिवार के सज्जन अजमेर में हो निवास करते हैं। सेठ उदयमलजी के कोई सन्तान न होने से संवत् १९२७ में फलौदी से सेठ बदनमलजी डड्डा के पुत्र सौभाग्यमलजी आपके नाम पर दत्तक आये । बीकानेर नरेश को आपने एक कंठी भेंट की। इससे दरबार ने प्रसन्न होकर आपको व्यापार की चीजों पर सायर का आधा महसूल तथा घरू खर्च की २६७
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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