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कोठारी-चोपड़ा कोठारी ( चोपड़ा ) गौत्र की उत्पत्ति
इस गौत्र की उत्पत्ति मण्डोवर के पबिहार राजपूतों से है । ऐसी किम्वदन्ती है कि संवत् ११५६ में मण्डोवर के तत्कालीन पदिहार राजा नाहदराव ने तत्कालीन जैनाचार्य श्री जिन वल्लभसूरि की बहुत सेवा भक्ति की भौर प्रार्थना की कि गुरुदेव मेरे कोई संतान नहीं है और निःसन्तान का जीवन इस संसार में व्यर्थ है, इस पर गुरुदेव ने अपना नासचूर्ण उन दोनों पति पत्नी के सिर पर डाल कर चार पुत्र होने का आशीर्वाद दिया। इसके पश्चात् संवत् ११६९ में आचार्य जिनदत्तसूरि ने उन सब को जैन धर्म में दीक्षित कर चौपदा, काम चौपड़ा, गणधर चौपड़ा, चौपड़गांधी, वेडर सांड आदि गोत्रों की स्थापना की। इसी वंश में आगे चलकर सोनपालजी हुए इनके पौत्र ठाकुरसीजी बड़े प्रतापी और बुद्धिमान हुए। ये राठौर राजा राव गजी के यहाँ कोठार का काम करते थे इससे कोठारी कहलाये । इसी खानदान में से भागे चलकर कुछ लोग बीकानेर तक चले गये और कुछ नागौर में बसे । नागौर वाले खानदान में क्रम से सांवतरामजी और गंगारामजी नामक दो भाई हुए। इनमें कोठारी सांवतरामजी तो अजमेर में रह कर व्यापार करते थे और कोठारी गंगारामजी युवावस्था ही से सैनिक का काम करते थे। अवसर पाकर यही कोठारी गंगारामजी स्वर्गीय महाराजा प्रथम तुकोजीराव के जमाने में, होलकरों की सेना में भरती हुए। तभी से इस खानदान का पाया इन्दौर स्टेट में जमा ।
रामपुरा भानपुरा का कोठारी खानदान कोठारी सांवतरामजी का परिवार
कोठारी भवानीरामजी-आप कोठारी सांवतरामजी के एकलौते पुत्र थे। आपका जन्म संवत् १४२९ में हुआ। आप कोठारी गंगारामजी के पास होल्कर दरवार की खिदमत में आये । ईस्वी सन् १८३१ में रामपुरा डिस्ट्रिक्ट का इंतजाम आपके जिम्मे किया गया, उस समय उस जिले में बहुत से ठाकुर बागी हो गये थे और व्यवस्था बहुत बिगड़ रही थी। कोठारी भवानीरामजी ने अपनी हिम्मत और हिकमत से उन लोगों को काबू में करके सारे जिले में अमन अमान कर दिया। इसके उपलक्ष में