SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 636
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आसवाल जाति का इतिहास आपको राय साहब की पदवी से सम्मानित किया है। भापके विष्णुलालजी, अमृतलालजी और कवर लालजी नामक ३ पुत्र हैं। विष्णुलालजी बापमा जयपुर स्टेट के स्टेशनरी डिपार्टमेण्ट के इंचार्ज हैं। इनके श्यामसुन्दरलालजी, जगदीशलालजी, दामोदरलालजी और त्रिभुवनलालजी नामक पुत्र हैं। अमृतलालजी बापना बम्बई से एम. बी बी. एस. की परीक्षा पास करते ही जोधपुर राज्य में असिस्टेंट सर्जन हुए । इसके बाद आपने बांसवादे में चीफ मेडिकल ऑफिसर के पद पर कार्य किया। इस समय भाप किशनगढ़ स्टेट में चीफ मेडिकल ऑफिसर तथा सुपरिन्टेन्डेन्ट जेल के पद पर हैं। आप मिलनसार और लोकप्रिय सजन हैं। भापके पुत्र चांदबिहारीलालजी और वृजबिहारीलाल हैं। , कँवरलालजी बापना बी० ए० ने सन् १९२५ में एल० एल० बी० की डिगरी हासिल की। बाद आप अजमेर में वकालत करने लगे। इसके बाद आप जयपुर में मुंसिफी तथा जजी के पद पर कार्य करते रहे और इस समय सन १९२७ से जयपुर में पब्लिक प्रासिक्यूटर हैं। आप अनाथालय, आर्य समाज, विधवा विवाह सहायक सभा, वाय स्काउट समिति आदि संस्थाओं में भाग लेते रहते हैं। आप शेखावाटी बोडिंग के सुपरिटेन्डेण्ट भी रहे थे। आपके सामाजिक विचार प्रगति शील हैं। आपके पुत्र श्यामबिहारीलाल हैं। बापना हुकमीचन्दजी का खानदान, सिरोही इस परिवार के पूर्वज बापना कलाजी सिरोही के पास दबानी में रहते थे। वहाँ के तत्का. हीन जागीरदार से आपकी अनबन हो गई, अतल आप अपने पुत्र हीराजी, अजयोजी, फत्ताजी, चतराजी और सूराजी को लेकर सिरोही चले आये। तबसे आपका परिवार सिरोही में निवास करता है, तथा ढबानी वालों के नाम से मशहूर हैं। बापना चिमनमलजी-बापना हीराजी के भूताजी, ऊमाजी, हेमराजजी और खूबाजी नामक चार पुत्र हुए। इनमें हेमराजजी के पुत्र चिमनमलजी, सिरोही स्टेट में दीवान रहे। इसके सम्मान स्वरूप उन्हें हाउस टैक्स माफ हुआ। वर्तमान में इस परिवार में उमाजी के पौत्र कुन्दनमलजी और मिश्रीमलजी, चिमनमलजी के पुत्र ताराचन्दजी और खूबाजी के पुत्र लखमीचन्दजी विद्यमान हैं।, बापना कुन्दनमलजी जोधपुर ऑडिट आफिस में सर्विस करते हैं। बापना जालिमचन्दजी-बाप अजवाजी के पश्चात क्रमशः जोरजी, जेताजी और मूलचन्दजी हुए। बापमा मूलचन्दजी के जुहारमलजी, लालचन्दजी, जालिमचन्दजी, नेनमलजी और चन्दनमलजी नामक
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy