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ओसवाल जाति का इतिहास
. सेठ चांदणमलजी के दो पुत्र हुए-सेठ जुहारमलजी और सेठ छोगमलजी। सेठ छोगमलजी के चार पुत्र हुए जिनके नाम क्रमशः श्री छगनमलजी, श्री सिरेमलजी, श्री देवीलालजी और श्री संग्रामसिंहजी है। श्री छगनमलजी के धनरूपमलजी और सांवतमलजी नामक दो पुत्र है। श्रीमान रायबहादुर सिरेमलजी बापना सी० आई० ई०
आप उन प्रसिद्ध पुरुषों में से हैं, जिन्होंने अपनी अखण्ड प्रतिभा, बुद्धिमत्ता, योग्यता और चतुराई से क्रमशः उन्नति करते हुए इन्दौर स्टेट के समान महत्वपूर्ण रियासत की प्राइम मिनिस्टरी को प्राप्त किया और उसका इतनी योग्यता से संचालन कर रहे हैं कि जिससे राज्य की प्रजा, महाराज और गवर्नमेण्ट तीनों ही भत्यन्त सन्तुष्ट हैं। ... आपका जन्म सन् १८८२ की २४ अप्रैल को हुआ। सन् १९०२ में आपने बी. ए. और बी. एस. सी. की परीक्षाओं में एक साथ सफलता प्राप्त की। इनमें आप विज्ञान विषय में सारी युनिवर्सिटी में सर्व प्रथम आये, जिस पर प्रयाग विश्वविद्यालय ने आपको इलियट छात्रवृत्ति और जुवीली पदक प्रदान किया। सन् १६०४ में एल० एल० बी० की परीक्षा में आप सर्व प्रथम उत्तीर्ण हुए। उसके पश्चात आपने भजमेर में वकालात आरम्भ की। तत्पश्चात आप इन्दौर राज्य की सेवा में प्रविष्ट हुए। सन् १९०७ में आप महिदपुर में डिस्ट्रिक्ट जज नियुक्त हुए, और दूसरे ही साल आप श्रीमंत एक्स महाराजा तुकोजीराव के कानूनी अध्यापक बनाये गये। सन् १९१० में आप महाराजा के साथ पूरोप भी गये । उसके पश्चात् महाराजा के राज्याधिकार प्राप्त कर लेने पर आप द्वितीय प्राइवेट सेक्रेटरी के पद पर नियुक्त हुए । इसके पश्चात् भाप सन् १९४५ में होम मिनिस्टर बने और १९२१ तक इस पद पर रहे। इसी साल जब बापने इस सर्विस का बाग पत्र दिवा, तब राज्य ने आपको खास तौर पर पेंशन दी । इसके बाद आप पटियाला के एक मिनिस्टर हुए। वहाँ आप बहुत लोकप्रिय रहे । सन् १९२३ में महाराजा होलकर ने आपको पुनः इन्दौर बुलाया और डेप्यूटी प्राइम मिनिस्टर के पद पर नियुक्त किया। सन् १९२६ फरवरी मास में आप एक्स महाराजा तुकेजीराव के द्वारा प्राइम मिनिस्टर के पद पर मियुक्त किये गये और उनके सिंहासन त्याग करने के बाद भी सरकार हिन्द ने आपको उसी पद पर कायम रूप से नियुक्त किया। उसके पश्चात महाराजा श्री यशवंतराव बहादुर ने अधिकार प्राप्ति के पश्चात भी आप को इसी पद पर रक्खा । भापको सन् १९१४ में गवर्नमेण्ट ने "राय बहादुर" की पदवी से विभूषित किया। सन् १९२० में महाराजा तुकोजीराव बहादुर ने एतमाद-वीर-उद्दौला के पद का सम्मान दिया। सन् १९३० में महाराज यशवन्तराव बहादुर ने वजीर-उद्दौला के पद से विभूषित किया। महाराजा यशवन्त.