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श्रीसवाल जाति का इतिहास
उदयपुर में और सेठ प्रतापचन्दजी ने जैसलमेर और इन्दौर में अपनी अपनी कोठियाँ स्थापित की। उस समय इस परिवार वालों के हाथ में बहुत सी रियासतों का सरकारी खजाना भी था। इसके अतिरिक्त राजस्थान के पचासों व्यापारिक केन्द्रों में इनकी कुल मिलाकर करीब चार सौ दुकानें थीं। इनमें से एक दुकान सुदूरवर्ती चायना देश में भी खोली गई थी। इनमें से कई केन्द्रों में आपने कई बहुमूल्य इमारतें भी बनवाई । जो अब भी पटवों की हवेलियों के नाम से स्थान २ पर प्रसिद्ध हैं। बापना परिवार के धार्मिक कार्य
___ कहना न होगा कि बापना परिवार ने राजनैतिक और व्यापारिक क्षेत्र में अपनी महान् प्रतिभा का प्रदर्शन किया। उसी प्रकार बल्कि उससे भी किसी अंश में एक पैर आगे उन्होंने धार्मिक क्षेत्र में अपनी महान् कीर्ति स्थापित की। जैसलमेर का सुप्रसिद्ध अमर सागर नामक बाग जो क्या प्राकृतिक सौन्दर्य की दृष्टि से, क्या स्थापत्यकला की दृष्टि से, सभी दृष्टियों से अत्यन्त सुन्दर है, इसी बापनावंश के महान् पुरुषों के द्वारा बनाया गया है। इस बाग में दो मन्दिर हैं, जिनमें से एक छोटा सम्बत् १८९७ में सेठ सवाईरामजी ने और दूसरा बड़ा सम्बत् १९२८ में सेठ प्रतापचन्दजी के पुत्र सेठ हिम्मतरामजी ने बनाया। इनमें से बड़ा मन्दिर बहुत ही सुन्दर, दुमंजिला और विशाल बना हुआ है। मन्दिर के सामने ही सुरम्य उद्यान है। इस मन्दिर में संगमरमर की कोराई और शिल्प-कार्य का सौन्दर्य बहुत ही अच्छा प्रस्फुटित हुआ है। सुदूर मरुभूमि में ऐसा विशाल मूल्यवान भारतीय शिल्पकला का नमूना अवश्य ही दर्शनीय है।
इस अमरसागर में एक विशाल प्रशस्ति * लगी हुई है। इस प्रशस्ति से मालूम होता है कि संवत् १८९१ में इन पांचों भाइयों ने मिलकर आबू, तारङ्गा, गिनमार और शत्रुजय की यात्रा के लिए, एक बड़ा भारी संघ निकाला था । इस संघ को निकालने में आप सब भाइयों ने करीब २३ लाख रुपया खर्च किया। इस संघ की रक्षा के लिए उदयपुर, कोटा, बून्दी, जैसलमेर, टोंक, इन्दौर तथा अंग्रेजी सरकार में सेनाएं भेजीं, जिनमें ४०.. पैदल १५०० सवार और चार तोपें थीं। इस संघ के उपलक्ष्य में ओसवाल जाति ने आपको संघाधि पति की पदवी और जैसलमेर के महारावल ने संघवी-सेठ की पदवी और लौद्रवा नामक-ग्राम जागीर में बख्शा, तथा हाथी की बैठक का सम्मान भी दिया।
*इस प्रशस्ति का तथा अमर सागर के मन्दिरों का चित्र इसी ग्रन्थ में "धार्मिक महत्व" नामक अध्याव में दिया गया है।