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बापना
बापनावंश की उत्पत्ति
जैन सम्प्रदाय शिक्षा नामक ग्रन्थ में बापनावंश की उत्पत्ति का विवेचन करते हुए लिखा है कि "धारा नगरी का राजा पृथ्वीवर पँवार राजपूत था । उनकी सोलहवीं पीढ़ो में जोवन और सच्चू नामक दो पुत्र हुए। ये दोनों भाई किसी कारणवश धारा नगरी से निकल गये और उन्होंने जांगलू पर विजय प्राप्तकर वही अपना राज्य स्थापित किया । विक्रम सम्वत् ११७७ में तत्कालीन जैनाचार्य्य श्री जिनदत्तसूरिजी ने इन दोनों भाइयों को जैन धर्म का प्रतिबोध देकर महाजन वंश और बहुफ़णा गोत्र की स्थापना की ।" उपरोक्त कथन को ऐतिहासिक महत्व किन अंशों में प्राप्त है यह यद्यपि निश्चय पूर्वक नहीं कहा जा सकता, तथापि इसमें सन्देह नहीं कि उक्त प्रान्त में बापना वंश वाले बड़े प्रतापी और प्रसिद्ध रहे हैं। नीचे हम इसी वंश का उपलब्ध क्रमबद्ध इतिहास देने का प्रयत्न करते हैं -
जैसलमेर का बापना (पटवा ) खानदान
ओसवाल जाति के जिन गौरवशाली वंशों ने राजस्थान के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है, जिन्होंने राजनैतिक, व्यापारिक और धार्मिक जगत में अपने गौरव और प्रताप का अपूर्व प्रकाश डाला है, उनमें जैसलमेर के वापनावंश का आसन बहुत ऊँचा है। इस वंश में कुछ विभूतिया ऐसी हो गई हैं, जिनके द्वारा निर्माण की हुई निर्मल स्मृतियां आज भी उनके गौरव का गान कर रही हैं।
बापना परिवार का व्यापारिक विकास
इस खानदान का प्राचीन इतिहास यद्यपि इस समय उपलब्ध नहीं है, फिर भी बापना -हिम्मतः रामजी द्वारा बनाए हुए अमरसागर की प्रशस्ति में बापना देवराजजी से लेकर आगे की पुकतों का सिलसिले वार वर्णन पाया जाता है। उससे मालूम होता है कि सेठ देवराजजी बापना के पुत्र सेड गुमानचन्दजी बापना हुए। सेठ गुमानचन्दजी के पाँच पुत्र थे ( १ ) सेठ बहादुरमलनी ( २ ) सेठ सवाईरामजी (३) सेठ मगनीरामजी ( ४ ) सेठ जोरावरमलजी और (५) सेठ प्रतापचन्दजी । इनमें से सेठ बहादुरमलजी मे कोटा शहर में, सेठ सवाईरामजीने झालरापाटन में, सेठ मगनीरामजी ने रतलाम में, सेठ जोरावरमलजी ने
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