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________________ वेद मेहता अंग्रेज को मदद देने के लिये भेजे गये थे। वहाँ मापने बड़ा अच्छा काम किया। संवत् १९२९ में महाराजा सरदारसिंहजी का स्वर्गवास हो गया। इस अवसर पर राज्य गद्दी की मालिकी के सम्बन्ध में पदा विवाद हो गया। इस अवसर पर भी आपने महाराजा रंगरसिंहजी को हर तरह की कोशिश करके गद्दी पर बिठाने में सहायता पहुंचाई। इस सहायता के उपलक्ष्य में महाराजा साहब ने आपके लिये एक खरीता जनरल जे. सी.बुक एजन्ट टू दी गवरनर जनरक बाबूमाम भेजा था। संवत १९३२ में जब कि तत्कालीन मिंस ऑफ वेल्स भारत में आये थे उस समय तथा संवत् १९३४ में देहली दरबार के समय भाप महाराजा को आशा से वेहली गये थे। यहाँ आपको खिल्लत बक्षकर आपका सम्मान बढ़ाया था। .. . ___ संवत् १९३५ में बेरी और रामपुरे भगदों को निपटाने के लिये आप जयपुर भेजे गये । वहाँ आपने अपने कागजों से सबूत देकर मामले को तय करवा दिया। इसकी तारीफ में कर्नल बेनन महोदय मे बोकि उस समय अपपुर के पोलिटिकल एजण्ट थे, आपके कार्यों से खुश होकर एक बहुत अच्छा सरिफिकेट प्रदान किया था, तथा दरवार को भी आपके कार्यों से पाकिक किया था। मेहताजी संवत् १८४८ से संवत् १९17 तक कई बार वकीली की जगह पर भेजे गये । संवत् १९२६ से संवत् १९४० तक आप आबू वकील रहे। इसके अतिरिक भी आपने कई बोगदे मोहदों पर काम किया । आप मुसाहिब और मेम्बर कौंसिल रहे। आपको तनख्वाह के अतिरिक सारा खर्च राज्य की ओर से मिलता था। यही नहीं बल्कि शादी और गमी के समय भी रियासत ही सार सर्व रंगाती थी। संवत् १९०२ में महाराजा रतनसिंहजी ने दूंगराणा तथा संवत् १९३९ में महाराजा रंगरसिंहजी मे सरूपदेसर नामक एक २ गांव जागीर में प्रदान किये । संवत् १९४८ में आपका स्वर्गवास हो गया। इस समय महाराजा मंगासिंहजी मातम-पुरसी के लिये आपके घर पर पधारे और आपका सम्मान बढ़ाया। आपके केसरीसिंहजी और वितसिंहजी मामक दो पुत्र थे। इनमें से मेहता केसरीसिंहजी अपने चाचा मेहता अनारसिंहजी के यहाँ तक रहे। ... मेहता अनारसिंहजी ने राज्य में कोई काम नहीं किया। उनका ध्यान म्यापार की ओर रहा। जवाहरात का ब्यापार करने के लिये वे जयपुर गये वहीं संवत् १९०२ में भापका स्वर्गवास हो गया। .. महाराव हरिसिंहजी-भाप महाराव हिन्दूमलजी के प्रथम पुत्र थे। 'भापका जन्म संवत् १८४३ में हुआ था। आप अपने समय के मुत्सुद्दियों में होशियार व्यक्ति माने जाते थे। राज्य में आपका बहुत प्रभाव था। संवत् १९१४ में जब कि भारतवर्ष के रणांगण में चारों ओर गदर मचा हुभा था, तब भाप भी महाराज्य की भोर से ब्रिटिश सरकार को मदद पहुंचाने के उद्देश्य से भेजे गये थे। वहाँ और र
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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