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________________ भण्डारी गणेशदासजी के पुत्र जसवंतराजजी स्टेट सर्विस में रहे। इसी प्रकार इनके भाई फौजराजजी भी कस्टम दरोगा रहे । आप दोनों का स्वर्गवास होगया है। जसवंतरावजी के फतेचंदजी नामक एक पुत्र हुए। ये हवाले में काम करते रहे। इनके पुत्र हंसराजजी का स्वर्गवास निःसंतानावस्था ही में हो गया। भंडारी ईसरदासजी का परिवार भण्डारी ईसरदासजी के बड़े पुत्र रामदासजी थे । ये मेवाड़ के परगनों के हाकिम थे। इनके दौलतरामजी, मुकुन्दरामजी और अभयराजजी नामक तीन पुत्र हुए। आप लोग उदयपुर स्टेट में सर्विस करते रहे। भण्डारी मुकुन्दरामजो वहाँ के कुंभलगढ़, राजनगर, खमनोर, उरड़ा, बागोर आदि जिलों के हाकिम रहे। आप तीनों भाइयों का स्वर्गवास हो गया है। तीसरे भाई अभयराजजी के पुत्र चन्दनमलजी इस समय उदयपुर में सर्विस करते हैं। . रामदासजी के भाई सिरेराजजी भी उदयपुर में हाकिम रहे। इनका स्वर्गवास केसरियाजी में हुआ। मापके अखेराजजी, छगनराजजी और प्रयागराजजी नामक तीन पुत्र हुए । भण्डारी अखेराजजी जोधपुर स्टेट के जालोर नामक स्थान में सायर दरोगा रहे। इस समय मापके कोई संतान नहीं है। आप बड़े सजन एवं इतिहास प्रेमी महानुभाव हैं। आपके छोटे भ्राता छगनलालजी पहले पुलिस में रहे। पश्चात् आप क्रमशः पर्वतसर, जोधपुर जसवंतपुरा, और बादमेर के हाकिम रहे। इसके बाद आप ज्यूडिशियक सुपरिंटेंडेन्ट भी रहे । भापका निःसंतनावस्था ही में स्वर्गवास हो गया है। आपके छोटे भ्राता भण्डारी प्रयागराजजी जोधपुर-चीफ कोर्ट में वकालात कर रहे हैं । आप जोधपुर के प्रसिद्ध सार्वजनिक कार्यकर्ता है। आपके उगमराजजी और कृष्णराजजी नामक दो पुत्र हैं। भण्डारी हणवंतचंदजी फौजचंदजी का परिवार, जोधपुर यह परिवार कुशलचन्दोत परिवार की एक शास्त्रा है। कुशलचन्दजी के सात पुत्रों में से बड़े माणकचंदजी थे। इनके रतनचंदजी और रूपचंदनी नामक दो पुत्र हुए। भण्डारी रतनचंदजी का जन्म संवत् १७९६ के लगभग हुआ था। ये बड़े बहादुर और रण कुशल थे। संवत् १८५० में महाराजा भीमसिंहजी की ओर से डीडवाने पर चढ़ाई कर उस पर अधिकार करने के उपलक्ष्य में इन्हें एक खास रुक्का एवम् दौलतपुरे में २०० बीघा जमीन मय कुंए के जागीर में मिली थी। इनका स्वर्गवास संवत् १८६१ में हुआ। भापके लालचंदजी, हीराचंदजी और श्रीचंदजी नामक तीन पुत्र हुए। भंडारी लालचंदजी-आपवीर प्रकृति के पुरुष थे । महाराजा मानसिंहजी के राजस्वकाल में भापको जालोर से लेकर आबू तक के डाकुओं को सर करने का कार्य मिला। इसे मापने बड़ी उत्तमता से किया। ६०
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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