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पासवान जाति का इतिहास
महाराजा बखतसिंहजी नागोर से जोधपुर के महाराजा होकर आये तब भाप भी साथ थे । यहाँ भाप महाराजा के तन दीवान रहे। आपका संवत् १८१६ में स्वर्गवास हो गया। आपके नरसिंहदासजी, मनोहरदासजी, और माधोसिंहजी नामक तीन पुत्र हुए।
भंडारी नरसिंहदासजी-बड़े पीर पुरुष थे। भापको संवत् १८०८ में डीडवाना की कड़ाई में जाना पड़ा। वहाँ जाकर आपने सफलता पूर्वक डीडवाना पर अधिकार कर लिया। इसके बाद भाप जसवंतपुरा के हाकिम रहे। इस समय भी यहाँ बहुत सी लड़ाइयाँ हुई। इन्हीं में से एक लड़ाई में इनके छोटे भ्राता मनोहरदासजी काम आये। भागर के पास अभी भी इनकी छत्री बनी हुई है। नरसिंह दासजी के कामों से प्रसन्न होकर महाराजा साहब ने आपको नागोर परगने का सिंगरावत तथा डीडवाने परगने का श्रमरपुरा नामक गाँव जागीर में बख्शा। मापसंवत् १८१९ में जोधपुर के दीवान रहे । भापने डीडवाने में कालीजी का मन्दिर तथा कुंआ बनवाया। आपके गोकुलदासजी एवम् शिवदासजी नामक दो पुत्र हुए। नरसिंहदासजी के दूसरे भाई माधौसिंहजी अजमेर के सूबे रहे। संवत १८२५ में ये महाराजा की ओर से उदयपुर के तत्कालीन महाराणा अरसीजी की सहायतार्थ और २ मुसुदियों के साथ सेना लेकर गये थे। इसी सहायता के उपलक्ष्य में महाराणा ने गौड़वाड़ का परगना महाराजा जोधपुर को दिया था। संवत् १०३९ में ये मेड़ता के पास मराठों के साथ होनेवाले युद्ध में सुधार हुए। मालकोट के पास इनकी छत्री बनी हुई है।
भण्डारी गोकुलदासजी नागोर, मेड़ता और डीडवाना के हाकिम रहे। आपके कोई संतान व हुई। भण्डारी शिवदासजी बहुत समय तक डीडवाना, सांभर और पचपदरा के हाकिम रहे। नमक पांच दरीबे आपके आधीन थे। आपका स्वर्गवास हो गया । आपके अचलदासजी तथा इसरदासजी नामक दो पुत्र थे। अचलदासजी अपने पिताजी के पश्चात् नमक दरीबों के हाकिम रहे। इसके पश्चात् ये सांभर, नागोर, मेड़ता, पाखी और फलोदी की हुश्मत पर भी रहे। भापका स्वर्गवास संवत् १९२८ में हुमा। आपके गणेशदासजी, सामदासजी और सांवतराजजी नामक तीन पुत्र हुए । अचलदासजी के भाई भण्डारी इसरदासजी भी सांभर पचपदरा, डीडवाना इत्यादि स्थानों पर नमक के दरीबा के हाकिम रहे। आपका स्वर्गवास संवत् १९२९ में हुआ। भापके रामदासजी तथा सिरेराजजी नामक दो पुत्र हुए।
मंडारी अचलदासजी का परिवार-भण्डारी गणेशदासजी जोधपुर से उदयपुर चले गये एवम् वहाँ भीलवाड़ा के गिरोही आफीसर रहे। इसके बाद आप कई स्थानों पर हाकिम रहे । संवत् १९५९ में जोधपुर में इनका स्वर्गवास हुआ। इनके जसवंतरायजी और फौजराजी नामक दो पुत्र हुए। भण्डारी गणेशदास मी के दोनों भाइयों का निःसंतान ही स्वर्गवास हो गया उनमें से सावतरामजी फलोदी के हाकिम रहे थे।