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भंडारी
बाशाह फर्रुखशियर
किये गये । फिर ये सब लोग शामिल होकर बादशाह के हुजूर में लाल किले गये । असमय में इन्हें आते हुए देखकर जनानखाने में चला गया । सुप्रख्यात इतिहास वेत्ता विलियम इहींन अपने Later Moghuls नामक ग्रन्थ के प्रथम भाग के पृष्ठ ३०२ में इस वृतान्त को इस प्रकार लिखता है: - " फर्रुखशियर अपने जनानखाने में चला गया वहाँ बेगमों और रखेलियों ने उसे घेर लिया। तुर्की युवतियों को महलों की रक्षा का भार दिया गया। सारी रात महलों में करुणा क्रन्दन होता रहा । कुतुल उलमुल्क ने जाफरखां को महलों से निकाल दिया और दीवानखाने के पहरे पर अपने सैनिक रखे । इसी समय फर्रुखशियर ने अजितसिंहजी को अपनी ओर मिलाने का विफल प्रयत्न किया । एक खोजे ने पहरेदारों की आंखों से बचकर फर्रुखशियर का पत्र अजितसिंहजी के जेब में डाल दिया उसमें लिखा था - " राजमहल के पूर्वीय भाग पर सख्त पहरा नहीं है । अगर तुम अपने कुछ आदमी वहाँ भेज दो तो मैं निकल जाऊँ। इस पर अजितसिंहजी ने जवाब दिया कि 'अब वक्त चला गया है। मैं क्या कर सकता हूँ। कुछ इतिहासकारों का यह भी मत है कि अजितसिंहजी ने यह पत्र फर्रुख शियर के पास भेज दिया मारवाड़ की ख्यात में इस घटना को इस तरह लिखा है- "फरू खशियर ने जनानखाने से महाराजा भजितसिंहजी के पास एक पत्र भेजा जिसमें जिला था - "तुम लोगों के दिल में मेरे लिये झूठा बहम पैदा कर दिया गया है। मेरी बादशाहत में जो कुछ आप करोगे वही होगा । मैं आप खोगों से कोई फर्क नहीं समक्षूंगा। मेरे आपके बीच में कुरान है । यह पत्र पढ़ कर महाराजा अजितसिंह जी खींवसीजी को लेकर एकान्त में चले गये और उन्होंने वह पत्र भण्डारी खींवसी को दिया । पत्र पढ़ कर खींवसीजी का हृदय करुणा से पसीज गया । उन्होंने बादशाह की जान बचाने के लिये महाराजा से अनुरोध किया और कहा कि इस मुसीबत में अगर हमने बादशाह की सहायता की सो वह बड़ा कृतज्ञ होगा और साम्राज्य नीति पर अपना जबर्दस्त वर्चस्व हो जायगा इस पर महाराजा अजितसिंहजी ने कहा कि फरू खशियर पहले भी मुझ से तीन दफा धोखा कर चुका है। उस वक्त सैय्यद बन्धुओं ने मुझे मदद दी । इसलिये सैयदों ही का साथ देने का मेरा विचार है।' यह सलाह मशविरा हो ही रहा था कि सैयदों के आदमी जनानखाने में गये और उन्होंने फर्रुखशियर को पकड़ा। सारे रनवास में भयङ्कर चीत्कार मच गई ! बेगमों ने बादशाह को पकड़ लिया । पर ये बेचारी ramाएँ कर ही क्या सकती थीं । सैय के आदमी बादशाह को पकड़ लाये और उसे कैद कर लिया। इसके थोड़े दिनों बाद अत्यन्त करता के साथ यह अभागा बादशाह मार डाला गया ! !
खींवसीजी द्वारा नये बादशाह का चुनाव हमने ऊपर दिखलाया है कि खींवसीजी भण्डारी का दिल्ली की साम्राज्य नीति पर भी बड़ा प्रभाव था । वे एक महान् राजनीतिज्ञ और मुस्स्सद्दी समझे जाते थे ।
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