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श्रीसवाल जाति का इतिहास
इसी समय आप राय की पदवी तथा हाथी पालकी कड़े मोती के सम्मान से विभूषित किये गये। इसके बाद आप प्रधान के सर्वोच्च पद पर प्रतिष्ठित किये गये। कहने का अर्थ यह है कि आप अपनी प्रतिभा अपनी योग्यता - और कार्य्यं कुशलता से मारवाड़ राज्य के सर्वोच्च पद पर अधिष्ठित किये गये । इन सर्वोच्च पदों पर रहते हुए आपने मारवाड़ राज्य की जो महान् सेवाएं की हैं, उनका थोड़ा सा उल्लेख यहां किया जाता है ।
सम्बत् १७६७ में बादशाह बहादुरशाह दक्षिण से अजमेर आया । इस समय एक अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य के लिये महाराजा ने भण्डारी खींवसीजी को भेजा । वे बादशाह से शाहजाद अजीम के मार्फत मिले बादशाह भण्डारीजी से बड़ा प्रसन्न हुआ और वह उन्हें अपने साथ लाहौर ले गया। कहने की आवश्यकता नहीं उन्होंने महाराजा के मिशन को सफल किया ।
सम्वत १७७१ में भण्डारी खींवसीजी के प्रयत्न से महाराजा को फिर से गुजरात का सूबा मिला। इसके लिये तुलराम नामक एक बादशाही अधिकारी के साथ बादशाही फर्मान भी महाराजा के पास भेज दिया गया। इसके बाद महाराजा ने भण्डारी विजयराज को अहमदाबाद भेजे, जहाँ जाकर उन्होंने अपना अधिकार कर लिया । पश्चात् अषाढ मास में कुँवर अभयसिंहजी और भण्डारी खींवसीजी बादशाही दरबार से लौटकर जोधपुर आये और उन्होंने महाराजा से मुजरा किया और गुजरात की सुभायतें प्राप्त करने के सारे समाचार कहे। इस पर महाराजा अजितसिंहजी बड़े प्रसन्न हुए । सम्बत् १७०२ में भण्डारी खींवसीजी प्रधानगी के सर्वोच्च पद पर फिर से प्रतिष्ठित किये गये । इसके एकाध वर्ष बाद गुजरात की सुभाषत महाराजा से वापस ले ली गई । इस पर महाराजा मे भण्डारी खीवसीजी को दिल्ली में लिखा कि हम तो द्वारका की यात्रा के लिये जा रहे हैं, तुम जैसे बने वैसे गुजरात का सूबा वापस प्राप्त करना। खींवसीजी ने इसके लिये जोरों से प्रयत्न करना शुरू किया और आपको सफलता होगई। गजरात का सूबा फिर से महाराजा के नाम पर लिख दिया गया । यह कार्य कर खींवसीजी जोधपुर आये, जहाँ महाराज ने आपका बड़ा आदरातिथ्य किया ।
सम्बत् १७७५ को फाल्गुन सुदी १० को सुप्रसिद्ध नवाब अब्दुल्लाखां और असनअलीखां * मे अजितसिंहजी से बादशाह फरूखशियर को तख्त से हटाने के काम में सहयोग देने के लिये कहा। इस सलाह मशविरे में कोटा के तत्कालीन राजा दुर्जनसिंहजी तथा रूपनगर के राजा राजसिंहजी भी शामिल पाकर इन्होंने बड़ी ताकत प्राप्त करली थी। बादशाह फर्रुखशियर को इन्ह से ही तख्त पर
ये दोनों भाई सैयद बन्धुओं के नाम से मशहूर थे । समय इतिहास में ये बादशाह को बनाने वाले तथा बिगाड़ने वाले कहे गये हैं । बैठाया और बाद में इन्होंने ही उसे तख्त से उतार कर कत्ल करवा दिया। १२४