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मोसवाल जाति का इतिहास
इनके पुत्र श्री देवीचन्दजी जो इनके भाई खेमचन्दजी के नाम पर दत्तक गये हैं इस समय एफ० ५० में पढ़ते हैं। सिंघवी बोरजी सिरोही स्टेट में नामाङ्कित व्यक्कि हुए, आपने सम्हही अगदों को निपटाने में बड़ा परिश्रम किया। आप संवत् १९१६ में सिरोही स्टेट के दीवान हुए। इनके खानदान में इस समय नैनमलजी, बाबूमलजी और केसरीमलजी विद्यमान हैं ।
सिंघवी सोमजी का परिवार-सिंघवी सोमजी के पुत्र अनोपचन्दजी, सुन्दरसी, और विजयराज जी हुए। इनमें से सिंघवी सुन्दरसीजी ने सिरोही राज्य की दीवानगी की। इनके चौथे पुत्र सिंघवी अमरसिंहजी के चार पुत्र हुए जिनमें सिंघवी दौलतसिंहजी का वंश भागे घला। श्री विजयराजजी के दो पुत्र हुए, जिनके नाम नेमचन्दजी और केसरीमझी था। सिंघवी दौलतसिंहजी के खींवजी, लालजी, माळजी व फतेचन्दजी नामक चार पुत्र हुए। इस सारे परिवार को सिरोही दरबार में प्रसन्न होकर निम्नलिखित परवाना दिया। ....
श्री सारणेश्वरजी महारावजी श्री परतापसिंहजी व कुंवरजी भी तखतसिंहजी वचनायता
सिंघवी दौलतसिंह वीरचन्द फतेचन्द माला लाला अमरसिंह सुप्रसाद बाँचजो अपंच थारे परदादा श्रीवंतजी श्यामजी व दादा सुन्दरजी अमरसिहजी वगैरा ने रियासत रा काम में बड़ी मदद व इमानदारी से काम बड़ा महाराजाजी श्री सुलतानासिंहजी व अखेराजजी वेरीसालजी दरजनसिंहजी मानसिंहजी रीवार काम दीवाण गौरी रो कियो व जोधपुर जैपुर री फौज श्रावती उण में मदद की फौज पाछी वाली व मुलक आवाद राखियो जिण सुं में थांपर प्रसन्न वे खुशनुदी रो परवाणो करदियो है और आगाने थे इण माफक चालसो जिगरी माने उमेद है सो थे मी थारां दादा परदादा माफक चालजो।
सम्वत् १८२५ रा चैत सुद १२ वार सूरजसिंघवी लालजी ने इंडर के राज्य में दीवानगी की। इनके तीन पुत्र थे-हेमराजजी, कानजी तथा पोमाजी। इन तीनों ने सिरोही राज्य में दीवानगी की । कानजी तो तीन बार दीवान हुए। पोमाजी ने सिरोही राज्य की बहुत सेवाएँ की। जब मीना भीलों के हमले के कारण व जोधपुर राज्य की लूटों के कारण मुल्क वीरान हो रहा था उस समय पोमाजी ने पोलिटिकल एजण्ट तथा सरदारों से मिलकर शांति स्थापित करने में बड़ी योग्यता से परिश्रम किया। पोमाजी के परिवार में इस समय सिंघवी बुखीलालजी और सोहनमलजी है।