________________
सिंघवी
श्री
सुखराज रूपराज सिंघवी ( धनराजोस) जालना
यह परिवार जोधपुर के सिंघवी भींवराजजी के छोटे भाई धनराजजी का है। सिंघवी लखमीचन्दजी के सावंतसिंहजी, जीवराजजी, भींवराजजी तथा धमराजजी नामक ४ पुत्र हुए इनमें भीवराजजी के परिवार का विस्तृत परिचय ऊपर दिया जा चुका है।
सिंघवी धनराजजी - संवत् १८४४ ( सन् १७८७) में जोधपुर महाराजा विजयसिंहजी ने मरहठों के हमले से अजमेर को मुक्त किया, तथा यहाँ के शासक सिंघवी धनराजजी को बनाकर भेजा, लेकिन चार साल बाद ही मरहठों ने फिर मारवाड़ पर चढ़ाई की और मेड़ता तथा पाटन की लड़ाइयों में उनकी विजय हुई | उस समय मरहठा सेनापति ने फिर अजमेर पर धावा किया। वीरवर सिंघवी धनराजजी अपने मुट्ठी भर बीरों के साथ किले की रक्षा करते रहे और मरहठों को केवल किले पर घेरा डाले रह कर ही संतोष करना पड़ा।
पाटन की पराजय के बाद महाराजा बिजयसिंहजी मे धनराजजी को आज्ञा दी कि 'किसा, शत्रुओं के सिपुर्द करके जोधपुर लौट आओ, लेकिन इस प्रकार किला छोड़ कर सिंघवी धनराजजी ने आना उचित नहीं समझा, अतएव स्वामी की भाशा पालन करने के लिए इन्होंने हीरे की कमी खाकी, उनके अन्तिम शब्द ये थे कि " जाकर महाराज से कहो कि उनकी आज्ञा पालन का मेरे लिए केवल यही एक मार्ग था । मेरे मृत शरीर के ऊपर से ही मरहठे अजमेर में प्रवेश कर सकते हैं" अस्तु ।
सिंघवी जोधराजजी - सिंघवी धनराजजी के हंसराजजी, जोधराजजी तथा सावन्त राजजी नामक ३ पुत्र हुए। इनमें सिंघवी जोधराजजी के जिम्मे संवत् १८५८ की आसोज सुदी ३ को जोधपुर महाराजा ने दीवानगी का ओहदा किया, लेकिन कई कारणों से वहाँ के कई सरदार आपके खिलाफ हो गये, अतपुद उन्होंने संगठित रूप से आपकी हवेली पर चढ़ाई करके भादवा वदी १ संवत् १८५९ को आपका सिर काढ डाला, इससे महाराजा भींवसिंहजी को बड़ा दुःख हुआ और इसका बदला लेने के लिये इनके चचेरे भ्राता सिंघवी इन्द्रराजजी को भेजा । इन्द्रराजजी ने ठाकुरों को दण्ड दिया, तथा उनसे हजारों रुपये वसूल किये । सिंघवी नवलराजजी - सिंघवी जोधराजजी के नवराजजी चिनैराजजी तथा शिवराजजी नामक ३ पुत्र हुए। इनमें सिंघवी नवलरामजी ने भी जोधपुर में दीवानगी के ओहदे पर कार्य किया, आपका बहुत छोटी अवस्था में स्वर्गवास हो गया था । सिंघवी विजेराजजी पर किसी कारणवश जोधपुर दरबार की नाराजी हो गई अतः इस खानदान के लोग चण्डावळ, बगड़ी, खेरवा, पाली आदि स्थानों में जावसे । के सिंघवी विजैराजजी के पुत्र अंतरावजी तथा अमृतराजजी थे इनमें जेतराजजी के खानदान लोग इस समय परभणी में रहते हैं। सिंघवी अमृतराजजी के पुत्र जसराजजी जाना गये तथा संवद
१०१