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श्रोसवाल जाति का इतिहास
देहान्त हुआ। इनके पुत्र तखतराजजी मे संवत् १९३३ में इण्टर मीजिएट की परीक्षा दी। इनको अपने पूर्वजों की सेवाओं के उपलक्ष्य में रियासत से तनख्वाह मिलती है। सिंघवी बनरावजी
... सिंघवी बनराजजी सिंघवी भीवराजजी के चौथे पुत्र थे। ये भी बड़े साहसी और बहादुर थे। जब महाराज भीमसिंहजी महाराज विजयसिंहजी के परलोकवासी होने के समाचार सुनकर जैसलमेर से लौटे उस समय मानसिंहजी की पार्टी वाले लोदा शाहमलजी आदि सरदारों ने आसपास के ग्रामों में विद्रोह मचाना शुरू किया । इनको दबाने के लिए महाराज भीमसिंहजी ने सिंघवी वनराजजी को फौल लेकर भेजा। उस समय ये मेड़ते के हाकिम थे। जालोर के पास माण्डोली नामक गाँव के समीप, मानसिंहजी के पक्षपाती सिंघवी शम्भमलजी ओर सिंघवी बनराजजी की फौज का मुकाबला हुआ। घोर युद्ध के पश्चात् बनराजजी की फौज विजयी हुई। मगर सिंघवी शम्भूमलजी ने तत्काल फिर फौज को इकट्ठा कर, फिर लड़ाई की। इस लड़ाई में बनराजजी के माला लगा था। संवत् १८५९ में महाराज भीमसिंहजी ने फिर फौज देकर आपको जालौर परघेरा डालने के लिए भेजा । पीछे से भण्डारी गंगारामजी और सिंघवी इन्द्रराजजी भी इस धेरे में सम्मिलित हुए । संवत् १८६० की सावण सुदी ६ को भयङ्कर कड़ाई हुई, इसमें जालौर तो फतह हो गया मगर बनराजजी गोली लगने से मारे गये। जालौर के दरवाजे के पास उनका दाहसंस्कार हुआ जहाँ उनकी छतरी बनी हुई है। इनकी मृत्यु के समाचार से महाराजा को बढ़ा दुःख हुआ, वे उनकी मातमपुर्सी के लिए उनकी हवेली गये और उनके पुत्र कुशलराजजी को जालौर की हुकूमत और सुरायता गांव पट्टे दिया। सिंघवी बनराजजी के पुत्र मेघराजजी, कुशलराजजी एवं सुखराजजी हुए। इनमें से मेघराजजी सिंघवी अखैराजजी के नाम पर दत्तक गये।
सिंघवी कुशलराजजी को दरवार की ओर से कड़े, मोती की कंठी और पालकी तथा सिरोपाव का सम्मान मिला। संवत् १८९० में सिंघवी कुशलराजजी और रायपुर ठाकुर ने फौज लेकर बगड़ी और
बसू के बागी आदमियों को परास्त किया, इसके नवाजिश में आपको कोसाणां गांव जागीर में दिया । संवत् १९१६ में इन्होंने गूलर ठिकाने पर दरबार का अधिकार कराया। संवत् १९१४ में गदर के टाइम पर लापने ब्रिटिश सेना को बहुत सहायता दी। इसके लिए सी. एम. वाल्टर और एडमण्ड हार्ड कार्ट आदि अंग्रेज अफसरों ने उन्हें कई अच्छे । सार्टिफिकेट दिये । संवत् १९२० में इनका स्वर्गवास हुआ। इनकी मातमपुर्सी के लिए दरबार इनकी हवेली पधारे ।
सिंघवी सुखराजजी बनराजजी के छोटे पुत्र थे। ये सोजत, जोधपुर इत्यादि स्थानों के हाकिम