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________________ सिंघवी हुआ। इनके तीन पुत्र हुए। हरकराजजी, देवराजजी और मुकुन्ददासपी। इनमें से देवराजजी सिंघवी फौजराजजी के नाम पर दत्तक गये । सिंघवी फतेराजजी के दो पुत्र हुए, उदयराजजी और प्रेमराजजी। उदयराजजी भिन्न-भिन्न स्थानों की हुकूमत करते रहे। इन्हें अपने पूर्वजों की सेवाओं के उपलक्ष्य में तनख्वाह मिलती रही । संवत् १९२५ में इनका देहान्त हुआ। सिंघी प्रेमराजजी कोठार के आफिसर (हाउस होल्ड आफिसर ) रहे। इसके बाद आपने महाराजा तखतसिंहजी को राज्याधिकार दिलाने का उद्योग किया, जिसके उपलक्ष्य में संवत् १९०० की कार्तिक बदी सप्तमी को महाराजा साहब ने आपको एक खास रुक्का बस्था । भाप उक्त महाराजा के राजकुमारों के गार्जियन भी रहे। सिंघवी प्रेमराजजी के हुकुमराजजी, चन्दनराजजी और सोहनराजजी नामक तीन पुत्र हुए। हुकुमराजजी जोधपुर स्टेट के ट्रेलरी आफिसर तथा नागौर, साम्भर इत्यादि भिन्न-भिन्न स्थानों पर गिराही सुपरिण्टेण्डेण्ट रहे। संवत् १९६५ में आपका स्वर्गवास हुभा। आपके छोटे भाई चन्दनराजजी १९७० में गुजरे । सोहनराजजी इस समय विद्यमान है, इन्हें स्टेट से पेन्शन मिलती हैं। इनके पुत्र लक्ष्मणराजजी महक्मा खास में क्लर्क है। हुकुमराजजी के पुत्र दुलहराजजी तथा उगमराजजी हुए। इनमें उममराजजी सिंघवी प्रयागराजजी के नाम पर दत्तक गये, तथा दुलहाजनी रूपराजजी के नाम पर दत्तक गये। सिंघवी उदयराजजी के पुत्र पृथ्वीराजजी हुकुमत इत्यादि का काम करते हुए संवत् १९४८ में स्वर्गवासी हुए। आपके पनराजजी और विशनराजजी नामक दो पुत्र हुए। पनराजजी के पुत्र सिंघवी रंगलालजी तथा खेमराजजी अभी विद्यमान हैं। इन्हें रिपासत से पेंशन मिलती है। रंगराजजी के पुत्र विजयराजजी तथा खेमराजजी के पुत्र अजितराजजी हैं। सिंघवी फतेराजजी के छोटे भाई उम्मैदराबजी के पुत्र हरकराजजी जेतारण के हाकिम रहे । देवराजजी संवत १९११ से १९२८ तक फौजबशी रहे। मुकुन्दराजजी जयपुर के वकील बनाए गये। आपने रिया. सत के सरहद्दी झगड़ों को निपटाने में बड़ा कार्य किया। इसके पश्चात् आप वाकयान कमेटी और म्युनिसिपल कमेटी के मेम्बर हुए। संवत् १९५७ में आपका स्वर्गवास हुआ। आपके मदनराजजी, मोहनराजजी तथा मनोहरलालजी नामक तीन पुत्र हुए। इनमें से मोहनराजजी देवराजजी के नाम पर दत्तक गये। मदनराजजी संवत् १९५७ से ८५ तक म्यूनिसिपल कमेटी के मेम्बर रहे। आपके चौकड़ी छोटी (बीलादा) नामक गांव जागीर में है। कई रियासतों से आपको पालकी और सिरोपाव मिला है। सिंघवी मोहनराजजी महाराज सुमेरसिंह के युवराजकाल में जनानी बोदी पर काम करते थे । संवत् १९७५ में इनका
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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