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मुहणोत
में जिन-जिन पुरुषों का हाथ था, उनमें मुहणोत ज्ञानमलजी भी एक प्रधान पुरुष थे। इसके लिये महाराजा मानसिंहजी ने आपको कई खास रुमके दिये जो अब भी आपके वंशज श्रीयुत वृद्धराजजी और श्री सरदारमलजी मुहणोत के पास हैं । खास रुक्कों के अतिरिक्त आपको मुसाहिब आला का पद और अच्छी जागीर भी दी गई।
सम्वत् १८६१ में जयपुर राज्य के शेखावतों से डिडवाना लूटा और उसपर अपना अधिकार कर लिया। महाराजा ने ज्ञानमलजी को उनके मुकाबले पर सेना देकर भेजा । आपने शेखावतों को वहाँ से निकाल कर न केवल डिडवाना ही पर वरन् उनके शाहपुरा गांव पर भी अधिकार कर लिया। आपके इस विरोचित कार्य के लिये श्री दरबार ने एक खास रुक्के में आपकी बड़ी प्रशंसा की है।
सम्वत् १८६२ में मारवाड़ पर चढ़ाई करने के लिये किशनगढ़ राज्य के तिहोद नामक गांव में मुकाम किया । इस चढ़ाई को रोकने किये ज्ञानमलजी से कहा गया। आपने बड़ी बुद्धिमानी से इस का को किया । सम्वत् १८६३ में जब जयपुर की फौजों ने जोधपुर पर मेरा डाला तब ज्ञानमलजी मे अन्य कुछ मुत्सदियों के साथ राज्य रक्षा के लिये बड़े-बड़े प्रयत्न किये, जिनकी जोधपुर नरेश ने अपने खास
रुक्कों में बड़ी प्रशंसा की है।
सम्वत् १८६१ में आपने आपकी सेवाओं की तत्कालीन प्रतापमखजी नामक पुत्र थे । सम्बत् १९०८ में मारवाड़ के आपको पाली परगने में उन
नवलमलजी और प्रतापमलजी - आप ज्ञानमलजी के इकलौते पुत्र थे। आपका जन्म सं० १८२६ में हुआ। प भी अपने पिताजी की तरह वीर और कुशल सेना नायक थे । सिरोही को विजय किया और उस पर मारवाड़ का झण्डा उड़ाया। tataye नरेश ने अपने दो ख़ास रुक्कों में बड़ी प्रशंसा की है। आपके महाराजा मानसिंहजी के समय में आपने बड़े-बड़े भोहदों पर काम किया। जागीरदारों के आपसी झगड़ों को कुशलता पूर्वक निपटाने के उपलक्ष्य में नामक गांव जागीर में मिला । सम्वत् १९२० में आपने महाराजा तख्तसिंहजी की आज्ञा से तखतपुरा नामक गाँव बसाया । ब्रिटिश सरकार के साथ जोधपुर राज्य की सन्धि करवाने में आपका प्रधान हाथ था। प्रतापमलजी के जोरावरमलजी और गणेशराजजी नामक दो पुत्र हुए। जोरावरमलजी ने जालोर और सोजत की हुकुमतों का काम किया। आपने और भी अनेक पदों पर काम किया। सीमा सम्बन्धी कई झगड़ों का योग्यता पूर्वक फैसला किया। आपके छोटे भाई गणराजजी ने मारवाड़ राज्य के खजांची का काम किया। आपने कई परगनों की सायरों पर काम किया ।
जोरावरमलजी के पुत्र धूहड़मलजी हुए । दरबार मे पोषाक प्रदान कर आपका सम्मान किया था । सम्बत् १९४३ में राय मेहता पत्रालाजी के निमन्त्रण से आप उदयपुर गये और
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