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________________ श्रोसवान जाति की म्पति रहा होगा। इसी प्रकार उसकी राजपूतनी सी के पुत्र भी प्रतिहार या पड़िहार कहलाये। इस लेख से निम्नलिखित दो बातों का और भी पता लगता है। पहला तो यह कि पंवारों ही की तरह पड़िहारों की उत्पत्ति भी आबू के अनिकुंड से मानी जाती है लेकिन वह गलत है। अगर ऐसा होता तो राजा बाहुक अपने आपको हरिश्चन्द्र ब्राह्मण की संतानों में क्यों लिखता और अपने पुश्तैनी पेशे ड्योढ़ीदारी की महिमा सिद्ध करने के लिये लेख के भारंभ में श्री रामचन्द्रजी के भाई लक्ष्मणजी के प्रतिहार पने की नज़ीर क्यों लाता। दूसरा यह कि पड़िहारों की उत्पत्ति का समय जो अब से हजारों वर्ष पहले माना जाता है। वह भी इस लेख से गलत साबित होता है। क्योंकि पड़िहार जाति की उत्पत्ति ही राजा बाहुक से १२ पुश्त पहले याने हरिश्चन्द्र ब्राह्मण से हुई है और बारह पुश्तों के लिये ज्यादा से ज्यादा समय ३.. वर्ष पूर्व का निश्चित किया जा सकता है। राजा बाहुक का समय संवत ८९४ का था। इस हिसाब से हरिश्चंद्र का पुत्र रंजिल जो मंडोवर के पबिहार राजाओं का मूल पुरुष था, वह संवत ६०० के करीब हुमा होगा। फिर संवत २२२ में पबिहारों का मंडोर में होना कैसे संभव हो सकता है। इस दलील से भी शोसियां नगरी की स्थापना संवत ६०० के पीछे राजा बाहुक या उसके भाई कक्कुक के समय में बाने संवत ८०० या ८५० के करीब हुई होगी। इन सब दलीलों से अधिक मजबूत दलील पह कि भाचार्य रत्नप्रभ सूरि के उपदेश से जो अठारह राजपूत कौमें एक दिन में सम्यक्त्व ग्रहण करके भोसवाल जाति में प्रविष्ट हुई थीं उन सबके नाम करीब २ ऐसे हैं जो संवत २२२ में दुनियां के परदे पर ही मौजूद नहीं थी। उन अठारह जातियों के नाम और उनकी उत्पत्ति का समय नीचे देने की कोशिश करते हैं। .. . परमार . पड़िहार १३ मकवाणा २ सिसोदिया ८ बोड़ा १४ कछवाहा ३ राठोड ९ दहिया १५ गौड़ ४ सोलंकी १. भाटी १६ खरवद ५ चौहान " मोयल 5. बेरड ६ सांखला १२ गोयल १८ सौंख परमार-यह जाति ऐतिहासिक दुनियां में वि० सं० ९०० के पश्चात् दृष्टिगोचर होती है। महाराज विक्रमादित्य को कई लोग पंवार मानते हैं मगर इसकी ऐतिहासिक तसदीक अभी तक नहीं हो पाई है। इस समय जो संवत् विक्रम संवत के नाम से प्रचलित है उसके पीछे विक्रम का नामांकित करना ही संवत्
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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