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पासवान जाति का इतिहास
उदयादित्य सं० १५
यशोधवल मरवर्मा सं० ११
धारावर्ष १२३६-१२५६ पशोवर्मा सं० ११९२-९३
सोमसिंह १२६० भजयवर्मा
कृष्णराज विंध्यवर्मा सं० १२००
प्रतापसिंह सुभटवर्मा सं० १२३५
जैतकरण सं० १३४५ भर्जुनवर्मा सं. १२५६
उपरोक्त वंशावलियों और उनके संवतों पर विचार करने से यह भी अनुमान किया जा सकता है कि उपेन्द्र और उत्पल दोनों नाम शायद एक ही राजा के हों और अरण्यराज और बैरिसिंह भाई २ हो । जिनमें पहले से आबू एवम दूसरे से मालवे की शाखा निकली हो । ऊपर लिखी हुई दोनों वंशावलियों में पूर्णपाल का समय करीब संवत् ११०० के निश्चित होता है और उत्पलराज इसके ७ पुश्त पूर्व हुआ है । हर पुरत का समय यदि २५ वर्ष मान लिया जाय तो इस हिसाब से यह समय याने उत्पलराज का समय करीब वि० सं० ९५० वर्ष का ठहरता है । यही समय वाक्पतिराज और महाराज भोज के शिला लेखों से उपेन्द्र का आता है। यह वह समय है जब कि मंडोवर में पड़िहार राजा बाहुक राज्य करता था। इस समय का एक शिलालेख संवत् ९४० का जोधपुर के कोट में मिला है । यही समय ओसियाँ के बसने का मालूम होता है। इस कल्पना की पुष्टि ओसियों के जैन मन्दिर की प्रशस्ति की लिपि से भी होती है। जो संवत १०१३ की खुदी हुई है । पड़िहार राजा बाहुक और उसके भाई कक्कुक के शिलालेखों * (संवत ११८ और संवत् ९४०) की लिपि से भी उक्त प्रशस्ति की लिपि मिलती हुई है। इससे पुरानी लिपि ओसियां में किसी और पुराने लेख की नहीं है। वहाँ एक भी लेख अभी तक ऐसा नहीं मिला है जिसकी लिपि संवत २०० और ३०.के बीच की लिपि से मिलती हो और जिससे यह बात मानी जा सके कि ओसियाँ नगरी संवत २२२ में या इसके पूर्व बसी थी।
एक और विचारणीय वात यह है कि ऊपलदेव ने मंडोवर के जिस राजा के यहाँ आश्रय लिया था उसको सब लोगों ने पड़िहार लिखा है लेकिन पड़िहारों की जाति विक्रम की सातवीं सदी में पैदा हुई ऐसा पाया जाता है । इसका प्रमाण बाहुक राजा के उस शिलालेख में मिलता है जिसमें लिखा है कि ब्राह्मण हरि. चन्द्र की राजपूत पत्नी से पड़िहार उत्पन्न हुए । हरिश्चन्द्र के चार पुत्र रंजिल वगैरह थे जिन्होंने अपने बाहु. बल से मंडोवर का राज लिया। मालूम होता है कि यह हरिश्चन्द्र मंडोवर के पूर्ववर्ती राजा का ब्योढ़ीदार
• यह शिलालेख जोधपुर परगने के घटियाले गाँव में है?