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श्री सवाल जाति का इतिहास
इनका चित्तौड़ के तत्कालीन महाराणाजी ने बहुत सम्मान किया । तथा उनसे वहीं रहने का आग्रह किया । कुछ समय व्यतीत होने के पश्चात् मांडवगढ़ ( मालवा ) का सुलतान किसी कारण वश अपनी सेना लेकर चित्तौड़ पर चढ़ आया । यह जानकर राणाजी ने कडुवाजी से कहा कि पहले भी आपके पूर्वजों ने हमारी बहुत सी उत्तम २ सेवाएँ की हैं, अतएव इस बार भी आप हमें हमारे कार्य में सहायता दीजिये । कडूवाजी ने महाराणा की बात स्वीकार की । अन्त में इन्होंने ( कडूवाजी ) अपनी बुद्धिमानी एवम् चातुर्य से बादशाह को समझा बुझा कर उसकी सेना को वापस लौटा दिया। जिससे सब लोग इनसे प्रसन्न हुए । महाराणाजी ने प्रसन्न होकर बहुत से घोड़े आदि प्रदान कर इन्हें अपना प्रधान मन्त्री बनाया। इनके मंत्रित्व काल में इन्होंने अपने गौत्री भाइयों का कर छुड़वाया । अपने सद्वर्ताव से इन्होंने वहां उत्तम यश उपार्जन किया, पश्चात् राणाजी से आज्ञा लेकर ये वापस गुजरात प्रांत के अनहिल पट्टण नामक स्थान में आये। वहां के राजा ने भी इनका बड़ा सम्मान किया और इनके गुणों से प्रसन्न हो कर पाटन इनके अधिकार में करदी |
कडूवाजी ने बहुत सा रुपया धार्मिक कार्यों में खर्च किया। गुजरात देश में जीव हिंसा को बन्द करवाया । संवत् १४३२ के फाल्गुन माह में खरतरगच्छाचार्य श्री जिन जसूरि महाराज का पाट महोत्सव करवाया। इसमें करीब १५ लाख रुपया खर्च हुआ। इसके अतिरिक्त इन्होंने भी अपने पूर्वजों की तरह श्री शत्रुंजय तीर्थ का संघ निकाला तथा वही मोहर, थाल और पाँच सेर का लड्डू लहान में बांटा। इस प्रकार अतुल सम्पत्ति खर्च करते हुए आप स्वर्गवासी हुए ।
कड़वाजी के पुत्र का नाम मेराजी था, आपकी धर्मपत्नी का नाम हर्षनदेवी था। मेराजी ने जैन तीर्थों के करों को माफ करवाया। इनके मांडणजी नामक पुत्र हुए, जिनकी भार्य्या का नाम महिमादेवी था। मांडणजी अपने परिवार सहित गुजरात की भूमि को छोड़ कर काठियावाड़ के बीरमपुर नामक ग्राम में चले गये। वहां इनके उदाजी नामक एक पुत्र हुए। उदाजी की भार्य्या का नाम उछृंगदेवी था । इनके दो पुत्र हुए, जिनके नाम क्रम से नरपाल और नागदेव था। इनमें से नागदेव के अपनी पत्नी नारङ्गदे से दो पुत्र रत्न पैदा हुए। जिनका नाम क्रमशः जैसलजी और वीरमजी था । जैसलजी की भार्य्या का नाम जसमादेवी था ।
सलजी के तीन पुत्र हुए। जिनके नाम क्रमशः बछराजजी, देवराजजी और हंसराजजी था । इनमें से ज्येष्ठ पुत्र बछराजजी अपने भाइयों को साथ लेकर मंडोवर नगर में राव श्रीरणमलजी के पास जा रहे । रामजी ने बछराजजी की बुद्धि के अद्भुत चमत्कार को देखकर उन्हें अपना मन्त्री नियुक्त किया ।