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________________ बच्छावत पौत्र चारों राजकुमार व्याख्यान के समय आवेंगे और जिनधर्म का प्रतिशेध प्राप्त करेंगे। निदान ऐसा ही हुभा। प्रातःकाल चारों ही भाई गुरु के व्याख्यान में पधारे। उस समय गुरु महाराज दया-धर्म का उपदेश कर रहे थे। उपदेश को सुनकर चारों के दिलपर बड़ा गहरा प्रभाव हुआ। उन्होंने उसी समय श्रावक के बारह गुणों का व्रत धारण किया। आचार्यश्री ने उनको महाजन वंश में सम्मिलित कर लिया एवम् बोहित्य के वंशज होने से बोहित्थरा गौत्र की स्थापना की जिसका अपभ्रंश नाम अब बोथरा है। . श्रावक हो जाने के पश्चात् चारों भाइयों ने धार्मिक कार्यों में रुपया लगाना प्रारंभ किया। इन्होंने आचार्य श्री को साथ लेकर सिद्धारलजी का एक बड़ा संघ निकाला मार्ग में उन्होंने अपने साधर्मी भाइयों को एक मुहर और सुपारियों से भरा हुआ एक थाल लहान में दिया। इससे लोग इन्हें फोफलिया कहने लगे। इसी समय से बोहित्थरा गोत्र से फोफलिया शाखा प्रकट हुई । इस यात्रा में चारों भाइयों ने दिल खोल कर खर्च किया। जब लौट कर वापस घर आये तब लोगों ने मिल कर समधर को संघपत्ति का पद दिया। समधर की रानी का नाम जयंती था। समधर के तेजपाल नामक एक पुत्र हुआ। समधर स्वयं विद्वान् था अतः उसने अपने पुत्र को खूब विद्याध्ययन करवा कर विद्वान बना दिया। जिस समय तेजपाल २५ वर्ष के थे तब समधर का स्वर्गवास हो गया। कुछ समय पश्चात् तेजपाल ने गुजरात के तत्कालीन राजा से गुजरात को ठेके पर लिया। अपनी बुद्धिमानी, अपने प्रभाव एवम् अपनी योग्यता से तेजपाल ने बहुत प्रसिद्धि प्राप्त की। इन्होंने संवत् १३७७ के ज्येष्ठ मास में पाटन नगर में तीन लाख रुपया लगाकर जैनाच यं श्री जिनकुशल सूरि का पाट महोत्सव करवाया तथा उक्त महाराज को लेकर शत्रुजय तीर्थ का संघ निकाला। इसके पश्चात् और भी बहुत सा रुपया उन्होंने धार्मिक कार्यों में खर्च किया। इस अवसर पर सब संघ ने मिल कर माला पहिना कर तेजपाल को भी संघाधिपति का पद प्रदान किया। तेजपाल ने भी सोने की मुहर, एक थाली और ५ सेर का एक लड्डू अपने साधर्मी भाइयों को लहाण स्वरूप बँटवाये। एक समय सम्मदेशिखरजी की यात्रा करते समय इन्हें रास्ते में म्लेच्छों ने रोका था उस समय ये म्लेच्छों को परास्त कर आगे बढ़े और यात्रा की। इस प्रकार कई शुभ कार्यों को करते हुए ये स्वर्गवासी हुए। इनकी स्त्री बीनादेवी से इन्हें बील्हा नामक एक पुत्र हुए। यही तेजपाल के उत्तराधिकारी हुए। ये बड़े धार्मिक पुरुष थे। इन्होंने भी शझुंजय तीर्थ का एक संघ निकाल कर एक मोहर एक थाल तथा एक लड्डु लहान स्वरूप बटवाया। इनके तीन पुत्र हुए, जिनके नाम कडूवा, धारण और नन्दा था। इनमें से कड़वा अपने पिता के उत्तराधिकारी हुए। __कडूवा नाम तो वास्तव में कड़वा है मगर वे ठीक इसके विपरीत अमृत के समान थे। एक समय का प्रसंग है कि ये अपने पूर्वजों की भूमि मेवाड़ देश के चित्तौड़ नामक स्थान में आये। वहां पर
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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