________________
जगत् सेठ का इतिहास
को नष्ट करने में बहुत बड़ी सहायता दी। इतिहास लेखक सरफखां की रकृखल प्रवृत्तियों का वर्णन करते हुए बतलाते हैं कि जगत सेठ के साथ वैर बांधकर सरफरखां ने बंगाल के सुख और शांति को नए करने में कितनी मदद को । यही वह समय था जब सुप्रसिर कातिक नादिरशाह की लूटमार से भारतवर्ष के अन्दर त्राहि २ मची हुई थी। इस बात की बड़ी जबरदस्त सम्भावना की जाती थी कि बंगाल का सरसब्ज मुल्क उसके कातिल हाथों से नहीं बचाया जा सकता। नवाब सरफलां उसका मुकाबिला करने में असमर्थ था। बंगाल के दूसरे ज़मीदार और शासक छोटे . अनेक टुकड़ों में विभक हो रहे थे और उनकी शक्तियां इतनी तहस नहस हो रही थी कि वे किसी भी प्रकार उस काली घड़ी से देश को बचाने में असमर्थ थे। सारे प्रान्त में आतंक आया हुआ था और शाम को आनंदपूर्वक सोने वाले लोग सोते समय ईश्वर से इस बात की प्रार्थना करते थे कि किसी तरह उनका सवेरा सुखपूर्वक उदय हो । ऐसे आतंक के समय में सारे प्रान्त की निगाह जगत सेठ की ओर लगी हुई थी। जगत सेठ का सुप्रसिद्ध मकान, जो आज गंगा के गर्भ में विलीन होगया है, उस समय प्रांत के तमाम जमीदारों और जिम्मेदार आदमियों का मंत्रणागृह बना हुआ था। बईमाम के महाराज तिलोकचन्द, ढाका के नवाब राजवल्लभ, राय भालमचन्द तथा हाजी महमद भी इस मंत्रणा में शामिल रहते थे। ऐसा कहा जाता है कि इस भयंकर समस्या का निपटारा भी जगससे कुशल मस्तिष्क ने आसानी के साथ कर दिया। कहा जाता है कि जगतसेठ की टकसाल में एक लाल सोने के सिक्के नादिरशाह के नाम के ढलवा कर उसको भेंट में भेजे गये जिससे वह बड़ा प्रसन हुभा और उसने बंगाल लूटने का विचार बन्द कर दिया। इस प्रकार जगत सेठ की राजनीति कुशलता से इस महान् विपत्ति का अंत हुआ।
हम ऊपर कह आये हैं कि सरफराज की विषयांधता ने उस प्रांत में एक बड़ा भसंतोष मचा रक्खा था। दैवयोग से उसकी इस प्रवृत्ति के कारण एक ऐसी घटना घटी कि जिसने जगत सेठ की रवि में उसको बुरी तरह से गिरा दिया और संभवतः इसी कारण उसे नवाबी से भी हाथ धोना पड़ा । बात यह हुई कि जगतसेठ के महिमापुर के एक मुहल्ले में एक बड़ी सुन्दर कन्या रहती थी जिसका सम्बन्ध शायद जगतसेठ के पुत्र से होने वाला था। सरफखां की विषय लोलुप डहि उस पर पड़ी और विषयो. न्मत्त होकर उसने उसके सतीत्व को नष्ट करना चाहा। जगतसेठ को यह बात मालूम पड़ी और उन्होंने ठीक मौके पर पहुँच कर उस दुष्ट से उस निर्बोध बालिका की रक्षा की और उसी समय उन्होंने उसको पद भ्रष्ट करने का निश्चय कर लिया। उन्होंने बंगाल के लोकमत को जो कि सरफखां के प्रति पहले ही विद्रोही हो रहा था प्रज्ज्वलित कर दिया जिसके परिणाम स्वरूप बहुत ही शीघ्र सरफखां का पतन हुमा भौर उसके स्थान पर नवाव अलीवर्दीखा नबाव की पदवी पर अधिषित हुभा ।