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________________ श्रीसवाल जाति का इतिहास गये, एक बार तो मरहठों ने उसकी कोठी को निर्दयतापूर्वक खूस की फिर भी उसकी स्मृद्धि अचल और अखण्ड बनी रही। सेठ माणकचंद के दो स्त्रियाँ थीं। पहली माणिकदेवी और दूसरी सोहागदेवी । मगर दोनों से ही उनको कोई सन्तान न हुई । माणिकदेवी उम्र में बड़ी थी । वह परमभद्र, धार्मिक और श्रद्धा-सम्पच महिला थी । इन्होंने सेठ माणकचंद के सम्मुख एक भव्य और अत्यन्त सुन्दर जैन मंदिर बनवाने की इच्छा प्रगट की । सेठ माणकचंद को पैसे की कमी तो थी ही नहीं, उसी समय बंगाल के 'कुशल से कुशल शिल्पियों को निमन्त्रित करके मंदिर की योजना तैयार की गई। भागीरथी के तीर पर बहुमूल्य कसौटी पत्थर का सारा मंदिर बनवाया गया। ऐसा कहा जाता है कि इस कसौटी पत्थर के संग्रह करने में उनको इतना मूल्य खर्च करना पड़ा कि जितने में शायद सोने और चांदी का मन्दिर तयार हो सकता था । गंगा के विशाल प्रवाह में वह मन्दिर यद्यपि बहगया है फिर भी उसका भग्नावशेष जो फिर से जोड़ जड़ कर ठीक कर लिया गया है आज भी जगत सेठ की अमर कीर्ति को घोषित कर रहा है। बादशाह फर्रुखसियर के पश्चात दिल्ली के रङ्गमंच पर बादशाह महम्मदशाह अवतीर्ण 'हुआ । उसने माणिकचन्द सेठ को जगत सेठ के नाम से दूसरी बार सम्बोधित कर सम्मानित किया । इतिहास लेखक इस बात को मानते हैं कि मुगल दरबार ने सबसे पहले जगत सेठ को ही इस तरह की बादशाही पदवी से सम्मानित किया। इसके अतिरिक्त उनको नवाब की गादी पर बाईं ओर बैठने का हक भी मिला । उस जमाने के रिवाज के अनुसार मोती के कुण्डल, हाथी, और पालकी भी सल्तनत की ओर से उन्हें बक्षी गई । बङ्गाल के नवाबों को सम्राट की ओर से इस बात की खास सूचना रहती थी कि जगतसेठ की अनुमति के बिना राज्यशासन का कोई भी महत्वपूर्ण काम न होना चाहिए। इस प्रकार गौरव मय जीवन बिताते हुऐ सेठ माणिकचन्द का स्वर्गवास हुआ और उनके स्थान पर उनके भाणेज सेठ फतेचन्द उनकी गाड़ी पर भाये । इधर बंगाल की नवाबी के अधिकार पर मुर्शिदकुलीखाँ के पश्चात् उनके जमाई शुजाउद्दीन और शुजाउद्दीन के पश्चात् उनका पुत्र सरफखाँ बैठे । सरफखां और जगतसेठ फतेचन्द मुर्शिदकुलीखाँ ने जिस शान्ति और सुब्यवस्था की जड़ बङ्गाल में जमाई तथा उसके दामाद शुजाउद्दीन ने अपनी योग्यता और साहस के बल पर जिसे नष्ट होने से बच्चा लिया। सरफखों ने बङ्गाल के रङ्ग मंच पर आते ही अपनी बेवकूफी, उतावलेपन और विषयान्धता की प्रवृतियों से उस सुव्यवस्था की जड़ पर कुल्हाड़ा चलाना प्रारम्भ किया । दिल्ली की डूबती हुई बादशाहत ने भी बंगाल की शांति और सुम्पवस्था H
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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