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भोसबालबाति और भामाश्य
भानन्दघनजी
जैन साहित्य के इतिहास में आनन्दधनजी का नाम प्रखर सूर्य की सरह प्रकाशमान हो रहा है। आप अध्यात्म शास्त्र के पारगामी और अनुभवी विद्वान थे। आत्मा के गूद से गूढ प्रदेशों में आप रमण करते थे। श्वेताम्बर जैन समाज के अत्यन्त प्रभावशाली साधुओं में से आप थे। आप के बनाये हुए पद अध्यात्म शास्त्र के गूद रहस्यों को प्रकट करते हैं। भव्य जनों के लिये मोक्ष का मार्ग आपने रेखांकित किया है। आपके दो ग्रंथ बहुत मशहूर हैं जिन के नाम भानन्दघनचौबीसी और भानन्दघन पहोसरी है। ये ग्रन्थ मिश्र हिन्दी गुजराती में हैं। ये मार्मिक शास्त्रदृष्टि और अनुभव योग से भरे हैं। इनमें अध्यात्मिक रूपक, अन्तर्योति का आविर्भाव, प्रेरणामय भावना और भक्ति का उल्लास आदि अध्यात्मिक विषयों का बहुत ही मार्मिकता से विवेचन किया है। यशोविजयी . ...
भाप हेमचन्द्राचार्य के बाद बड़े ही प्रतिभावान और कीर्तिवान भाचार्य हो गये हैं। भाप बड़े नैयायिक, तर्क शिरोमणि, महान् शास्त्रज्ञ, जबरदस्त साहित्यक भ्रष्टा, प्रतिभावान समन्वयकार, प्रचण्ड सुधारक तथा बड़े दूरदर्शी आचार्य थे। श्री हेमचन्द्राचार्य के पीछे आप जैसा सर्व शास्त्र पारंगत, सूक्ष्म स्टा और बुद्धिनिधान आचार्य जैन श्वेताम्बर समाज में दूसरा न हुआ। आपका संक्षिप्त जीवन आप के समकालीन साधु कांतिविजयजी ने 'सुजश वेली' नामक गुजराती काव्य कृति में दिया है जिसकी खास २ बातें हम नीचे देते हैं।
आप तपेगच्छ के साधु थे। आप सुप्रख्यात आचार्य हीरविजयसूरि के शिष्य तर्क विद्या विशारद उपाध्याय कल्याणविजयजी के शिष्य सकल शब्दानुशासन निष्णांत लाभषिजयजी के शिष्य नप. विजयजी के शिष्य थे। आपका जन्म संवत् १६८० के लगभग हुआ। आपने अपने गुरू नयविजयजी के पास ग्यारह वर्ष तक अध्ययन किया । आपने काशी आगरा आदि शहरों में भी विभिन्न शास्त्रों का अध्ययन किया। आपने न्याय, योग, अध्यात्म, दर्शन, धर्मनीति, धर्मसिद्धान्त, कथाचरित्र भादि अनेक विषयों पर कई ग्रन्थ लिखे । आपके ग्रंथों में अध्यात्म सार, देव धर्म परीक्षा, अध्यात्मो. पनिन्द, अध्यात्मिक मत-खण्डन सटीक, यतिलक्षण समुषय, नयरहस्य, नय प्रदीप, नयोपदेश, जैन तर्क परिभाष और दस शान बिंदु, द्वात्रिंशत द्वात्रिंशिका सटीक, ज्ञानसार, अस्पृशद गतिवाद, गरु वरण विनिश्चय, सामाचारी प्रकरण, भाराधक विराधक चतुर्भगी प्रकरण, प्रतिमाशतक,