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मोसवाल जाति का इतिहास
मुनि भानुचन्द्र
भापका भी सम्राट अकबर पर बड़ा प्रभाव था। भाप उन्हें हर रविवार को 'सूयं सहस-नाम' सुनाते थे। सुप्रख्यात इतिहास वेत्ता बदौनी लिखता है कि ब्राह्मणों की तरह सम्राट अकबर प्रातः काल में पूर्व दिशा की तरफ मुख करके खड़ा रह कर सूर्य की आराधना करता था और वह संस्कृत ही में सूर्यसहस-नाम भी सुना करता था। मुनिसिद्धचन्द्र
___ आप मुनि भानुचन्द्रजी के शिष्य थे। आपसे भी सम्राट अकबर बड़े प्रसव थे । शत्रुजय तीर्थ में नये मन्दिर बनवाने की बादशाह की ओर से जो निषेधाज्ञा थी उसे आपने मंसूख करवाया । सिदिचन्द्रजी फारसी भाषा के भी बढ़े विद्वान थे। सम्राट ने भाप को 'खुश फहेम' को पदवी प्रदान की थी। एक समय अकबर ने बड़े स्नेह से आपका हाथ पकड़ कर कहा कि मैं आपको ५००० घोड़े का मन्सब और जागीर देता हूँ, इसे आप स्वीकार कर साधुवेष का परित्याग कीजिये। पर यह बात सिद्धि चन्द्रजी ने स्वीकार न की। इससे बादशाह और भी अधिक प्रभावित हुए । इस वृतान्त को स्वयं सिरिचन्द्रजी ने अपनी कादम्बरी की टीका में लिखा है। विजयसेन
___आप भी बड़े प्रभावशाली जैन मुनि थे। विजय प्रशस्ति नामक ग्रन्थ में लिखा है कि आपने सूरत में चिंतामणि मिश्र आदि पंडितों की सभा के समक्ष भूषण नामक दिगम्बराचार्य को शास्त्रार्थ में निरुत्तर किया था। अहमदाबाद के तत्कालीन सूबे खानखाने को अपने उपदेशामृत से बहुत प्रसध किया था। आप बड़े विद्वान थे और आप की विद्वता का एक प्रमाण यह है कि आपने योग शाम के प्रथम श्लोक के कोई ७०० अर्थ किये थे। विजय प्रशरित काव्य में लिखा है कि श्री विजयसेमजी ने कावी, गंधार, अहमदाबाद, खम्भात, पाटन आदि स्थानों में लगभग चार लाख जिन बिम्बों की प्रतिष्ठा की। इस के अतिरिक्त आप के उपदेश से तारंगा, शंखेश्वर, सिद्धाचल, पंचासर, राणपुर, आरासण और बीजापुर मादि स्थानों के मंदिरों के पुनरुद्धार किये गये। विजयदेवसूरि
आप उपरोक्त विजयसेनसूरि के पट्टधर शिष्य थे। संवत् ११७४ में सम्राट जहाँगीर ने मॉडवगढ़ स्थान में आपकी तपश्चर्या से मुग्ध हो कर आपको 'जहाँ गिरी महातपा' नामक उपाधि से विभूषित किया। आप बड़े तेजस्वी और तपस्वी थे।
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