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श्रीसवाल जाति का इतिहास
स्वर्ण मुद्राओं को आचार्य श्री ने अस्वीकार कर दिया। इसी समय जामनगर के तत्कालीन जाम साहब के साथ उनके मन्त्री अब्जी भंसाली ऊना पहुंचे और उन्होंने आचार्य देव की अंग पूजा ढाई सेर स्वर्ण मुद्रा से की। इसी समय आचार्य देव ने ऊना के अधिकारी खानमहम्मद से हिंसा छुड़ाई। संवत् १६५२ के वैसाख मास में आपने उना में एक मन्दिर की प्रतिष्ठा की और इसी साल के भादवा सुदी " गुरुवार के दिन आपका स्वर्गवास हो गया।
आचार्य वर हीरविजयसूरि का संक्षिप्त परिचय हम ऊपर दे चुके हैं। जैन इतिहास के पृष्ठ आपके महान् कार्यों का उल्लेख बड़े अभिमान और गौरव के साथ करेंगे। आपने भगवान महावीर स्वामी के अहिंसा सिद्धान्त की सारे हिन्दुस्थान में दुन्दुभी बजाई। तत्कालीन मुगल सम्राट अकबर तथा भारत के कई राजा महाराजा और दिग्गज विद्वान आपके अलौकिक तेज के आगे सिर झुकाते थे । आप एक अलौकिक विभूति थे और उस समय आपने अपने आत्मिक प्रकाश से सारे भारतवर्ष को भालोकित किया था। अबुलफजल आदि कई मुसलमान लेखकों ने भी आपकी अपने ग्रन्थों में बड़ी प्रशंसा की है। जिनचन्द्रसूरि
आप भी जैन श्वेताम्बर सम्प्रदाय के एक बड़े प्रख्यात आचार्य हो गये हैं। आप जैन शास्त्रों के बड़े प्रकाण्ड पंडित थे। एक समय सम्राट अकबर ने मेहता करमचन्द से पूछा कि इस समय जैन शास्त्र का सबसे बड़ा पण्डित कौन है। तब करमचन्दजी ने आचार्य जिनचन्द्रसूरि का नाम बतलाया था । इस समय उक्त सूरिजी गुजरात के खम्भात नगर में थे। उन्हें सम्राट की ओर से निमंत्रित किया गया। इस पर आप बादशाह की मुलाकात के लिये रवाना हो गये। अहमदाबाद, सिरोही होते हुए आप जालोर पहुंचे और वहाँ पर आप ने चातुर्मास किया। वहाँ से मगसर मास में बिहार कर मेड़ता, नागौर, बीकानेर, राजलदेसर, मालसर, रिणपुर, सरसा आदि स्थानों में होते हुए फाल्गुन सुदी १२ को आप लाहौर पहुंचे। उस समय सम्राट अकबर लाहौर में थे और उन्होंने आचार्य श्री का बड़ा सन्मान किया । सम्राट के आग्रह से आप ने लाहौर में चातुर्मास किया। इस वक्त जयसोम, रत्ननिधान, गुणविनय और समयसुन्दर आदि जैन मुनि आप के साथ थे।
कहने की आवश्यकता नहीं कि जिनचन्द्ररि ने बादशाह अकबर पर बड़ा ही अच्छा प्रभाव गला। सूरिजी ने सम्राट से कहा कि द्वारिका में जैन और जैनेतर मंदिरों को नौरंगखाँ ने नष्ट कर दिया है, आप उनकी रक्षा कीजिये। इस पर सम्राट अकबर ने जवाब दिया कि "शत्रुजय आदि सब जैनतीर्थ मैं मंत्री करमचन्द के सुपुर्द कर दूंगा तथा मैं तत्संबंधी फर्मान अपनी निजी मुद्रा से गुजरात के हाकिम