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श्रोसवाल आति और श्राचार्य
उपाध्याय को बादशाह के पास छोड़ आये थे। वहाँ आप बादशाह को 'कृपा रस कोष' नामक काव्य सुनाते थे। शान्तिचन्द्रजी को आचार्य देव से मिलने की इच्छा हुई और उन्होंने भानुचन्द्रविषुद्ध नामक एक सजन को बादशाह के पास रख कर बादशाह से आचार्य श्री के पास जाने की अनुमति मांगी। बादशाह ने सूरि के पास भेंट के रूप में स्वमुद्रांकित एक फर्मान भेजा जिसमें गुजरात में हिन्दुओं पर लगने वाले जजिया नामक कर की माफी का आदेश था। इसके अतिरिक्त पर्युषण आदि बहुत से बड़े दिनों में हिंसा न करने का भी उसमें आदेश था। हीरविजयसूरि के आग्रह से साल भर में कई पवित्र दिनों के उपलक्ष में बादशाह ने जीव हिंसा को बिलकुल बन्द कर दिया था। सुप्रख्यात इतिहास वेत्ता बदौनी लिखता है:
"In these days (991-1583 A. D.) new orders were given, The killing of animals on certain days was forbidden, as on sundays because this day is sacred to the sun during the first 18 days of the month of Farwardin, the whole month of abein (the month in which His majesty was born ) und several other days to please the Hindoos. This order was extended over the whole realm and capital punishment was inflicted on every one who acted against the command."
कहने का अर्थ यह है कि आचार्य हीरविजयसूरि ने सम्राट अकबर पर अपने अलौकिक आत्मतेज का इतना दिव्य प्रकाश डाला था कि सम्राट अकबर ने मुसलमान होते हुए भी जीव हिंसा-निषेध के लिये कई आदेश प्रसारित किये थे *।
श्री हीरविजयसूरि पाटन में चार्तुमास कर पालीताना के लिये रवाना हुए और आप यथा समय वहाँ पर पहुंचे। वहाँ पाटन, अहमदाबाद, खम्भात, मालवा, लाहौर, मारवाड़, सूरत, बीजापुर आदि अनेक स्थानों से लगभग दोसों संव आये जिनमें लाखों यात्री थे। संवत् १६५० की चैत्र सुदी पूर्णिमा को वहाँ बदा भारी उत्सव हुआ। सेठ मूलाशाह, सेठ तेजपाल और सेठ रामजी तथा सेठ जस्सु ठक्कर आदि धनिकों द्वारा बनाये गये उच्चत जैन मन्दिरों को आपने बड़े समारोह के साथ प्रतिष्ठा की। वहाँ से आप ऊना नामक स्थान में पधारे और वहाँ पर चातुर्मास किया। यहाँ तत्कालीन गुजरात का सूबा आजमखाँ, आचार्य देव की सेवा में उपस्थित हुआ और उसने आपको १००० स्वर्ण मुद्राएँ (सोने की मुहरें) भेंट की। इन
• इस सम्बन्ध की अधिक जानकारी के लिये हम मुप्रख्यात मुनि विद्याविजयनी कृत 'सूरीश्वर अने सम्प्राट्' मामक ग्रंथ पढ़ने के लिए अपने पाठकों से अनुरोध करते है। इस ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद भी से गया है जिसका नाम सुरीश्वर और समान है।
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